बचाओं इन समाजसेवकों से !
समाजसेवक, कितना प्यारा शब्द! भारत में तो समाजसेवकों की कभी कमी न रही।समाजसेवा तो यहां किसी उद्योग की तरह फल-फूल रही है।इस देश में आदमी कुछ न कर सका तो समाजसेवा अवश्य कर सकता है, कुछ न करने का नामही समाजसेवा है। करनेवालों में दखलंदाजी का नाम समाजसेवा है।
आखिर लोकतंत्र में नौकरों को भी सर्विस यानी सेवा कहते हैं,जब इतने सारे वेतनभोगी सेवक होने के बावजूद इन मुफ्त समाजसेवकों की जरूरत ही क्या है?
समाजसेवा ठगी का पर्याय बन रहा है। राजनीति के सहायक के रुप में भी क्रियाशील रहता है। तकरीबन सभी राजनेता समाजसेवा का चोला ओढ़कर ही राजनीति में दाखिल हुए हैं।
समाजसेवा का अपना एक मजा है। उसमें कोई जोखिम नहीं, फायदे ही फायदे! एक तो समाजसेवा है यानी देशभक्त है,त्यागी है वगैरह! तो कोई रोक-टोक नहीं।उसे सब अधिकार हासिल है।
लोगों के प्रश्नों को लेकर वह आवाज उठाता है,लोग समर्थन करते हैं। लोगों का समर्थन हो तो इस देश में कुछ भी किया जा सकता है।बस,नारे लगानेवालों का हुजूम उमडे!
समाजसेवक जहां तहां फैले हैं,उनकी जरूरत या उन्हें जरुरत हर जगह हैं।वे तो अवसर की खोज में रहते हैं।समय पर कोई पहुंचे न पहुंचे मगर समाजसेवक पहुंच जाते हैं क्योंकि वे सूंघते रहते हैं।
अब तो पति-पत्नी के विवाद में भी समाजसेवक टपके हैं। दीवारों में कान लगातें है , कोई गाली-गलौज या बर्तनो की आवाज तो नहीं?
समाजसेवक बिना किसी स्वार्थ के ,उनके कहने के अनुसार लोगों की मदद करते हैं, चूंकि लोगों का भी स्वार्थ होता हैं इसलिए वे चूं तक नहीं करते।
वेतनभोगी सेवक तो बेचारे अपना कर्तव्य निभा रहे हैं ,बेवेतनी समाजसेवक उनके काम में अड़ंगा डालते हैं।
इल्ज़ाम लगातें है, कारवाई तथा छानबीन की मांग करते हैं। नौकरीपेशा लोगों के लिए तो समाजसेवक किसी सौतन से कम नहीं!
समाजसेवकों की बहुत बड़ी जमात इस देश में हैं। सुपारी लेकर भी किसी की हित में और अहित में भी ये कार्यरत रहते हैं।भलाई और इन्साफ के नाम पर कितना छल-कपट करते हैं इसका पता तो उसके तहों में जाकर हि चलेगा।
समाजसेवक का मुखौटा लगाकर, बेझिझक किसी भी विवाद में कूदों, इल्ज़ाम लगाओं,बदनामी करों,उनका कोई नुक़सान नहीं।
समाजसेवा एक धर्म हो, धंधा नहीं।
- ना.रा.खराद