- ना.रा.खराद
मनुष्य का चरित्र बड़ा अजीब होता है,उसका समूचा व्यवहार बहुत पेचीदा है,न तो स्वयं इसे सुलझा पाता है,न कोई और मदद कर सकता है,वह उसके अपने मकड़ जाल में ऐसे उलझा रहता है कि अपने गिरेबान में झांक नहीं पाता। मनुष्य को नजदीक के चीजों का आकर्षण नहीं होता है,दूर के ढोल सुहावने,इसी कहावत को वह चरितार्थ करता है।वह जिस धरती पर है,उसका उसे आकर्षण नहीं,उसका महत्व नहीं, बल्कि उन ग्रहों को पूजता है,जो उससे लाखों मील दूर है।
अपने आसपास के मंदिर मस्जिद से उसे काशी काबा आकर्षित करते हैं। विदेश में अपना ज्ञान बंट रहा है,तो अपने देश में पश्चिमी देशों का!
शादियों में रसोइया अगर बाहर से बुलाया गया,तो खास बात है,अपना रसोइया उससे बेहतर मगर अपना है, इसलिए उपेक्षित।
अपने, अपनों से सदैव उपेक्षित रहते हैं,अन्य से सम्मानित होने पर ही ये जमात अपनों की काबिलियत को पहचान पाते हैं। पर्यटन एक तरह से अपरिचित का आकर्षण है। गैरों को हम अपनाते हैं, अपने तो किस खेत की मूली होते हैं। बाहरवालों से मोहब्बत और अपनों से नफ़रत यही आज के मनुष्य की फितरत है।बाहर के लोगों की सलाह लेकर कितने घर तबाह हुए। अपने करीब जो है,उसका महत्व जानें,उसकी उपेक्षा मंहगी पड़ती है, क्योंकि
वह जब कामयाब हो जाता है,तो बाहर के लोगों का
एहसान मानता है,और यह बहुत बड़ा अपमान है।
हमारे नजदीक का व्यक्ति जिसे हम पहचान नहीं पाते,यह परख हमें क्यों नहीं, क्यों किसी दूसरे को यह परख करनी पड़े।हम यह मानने को राजी नहीं रहते कि कोई उच्च प्रतिभा हमारे अपने घर में,करीब है, करीबी व्यक्ति को जैसे हम तुच्छ समझते हैं, मगर
यही भाव उसके मन में रुखापन पैदा करता है, परिचित, मित्रों, रिश्तेदारों से मिली उपेक्षा या रुखापन उसके लिए एक जहर बन जाती है। प्रतिभाशाली चाहें, जहां कहीं हो , जो कोई हो उसे पहचानना तथा उसकी उपेक्षा न करना सच्ची मानवता है।
छोटे छोटे बच्चों में काबिलियत के लक्षण दिखाई देते हैं, उसकी अगर उपेक्षा हो,तो टूट जाएगा,बिखर जाएगा। अनेक संस्थाओं में काबिलियत को नजरंदाज किया जाता है, प्रतिभा को रौंदा जाता है,
नीतियों को कुचला जाता है,ऐसी जगह जहां,प्रतिभा का दम घुटता है, उपेक्षा जताती है कि हम प्रतिभा विरोधी है।जो पारखी नजर ओरों को है, हमें क्यों नहीं,या जानबूझकर हमने उससे मुंह मोड़ लिया है।
जिन चीजों के लिए हम दूर भटक रहे हैं,वे तो तुम्हारे आस-पास है, मगर कभी उस आंख देखें नहीं,या आंख बंद करके बैठे हैं।
बड़े मनीषियों की घर में उपेक्षा होती है, दुनिया में जिसकी पूजा होती हो,और में उपेक्षा या तिरस्कार,तो इसका मतलब क्या है? आखिर हमें एतराज क्या है कि हम अपनों को परख नहीं पाते, उसके गुणों की उपेक्षा करते हैं। इसके पीछे अपना अंहकार होता है, क्योंकि हम यह मानने को तैयार नहीं होते कि हमसे कोई विशेष है,उसकी उपेक्षा करके हम उसे कम आंकते हैं, मगर बाहर लोग जब तव्वजो देते,सिर पर लेते हैं, जय-जयकार करते हैं,तब इन सबकी आंखें खुल जाती हैं,तब ये अपने
अपना कहलाते हैं,केवल कामयाबी में शरीक होते हैं,उसका श्रेय लेते हैं।
होनहार को पहचानना, उसे सहयोग देना, तव्वजो देना सीखें,तभी कुछ भला हो। ईश्वर को भी दूर खोजते हैं,जो जितना दूर जाएगा , उतना बड़ा भक्त।
जो शिखर पर पहुंचे, उसका गुणगान, मगर ये सब थोथा है। स्वर्ग पर भी इसलिए विश्वास रखते हैं, जहां हो वहीं स्वर्ग है, मगर हमें कहीं और खोजना है, क्योंकि कोई भी अच्छी चीज करीब कैसे हो सकती है?
अपने परिचित लोगों की,करीबी लोगों की परख कद्र करना सीखो,उनकी उपेक्षा नुकसान कर सकती है। मां-बाप तक अपनी औलाद को परख नहीं पाते, शिक्षक भी बहुत मर्तबा पहचान नहीं पाते ,इसी जगह गलती होती है। अपनों से बेरुखी या उपेक्षा बहुत खलती है, इससे जो बाहर आता है,वह हानिकर है।आप जो कोई हो, जहां कहीं हो , उच्च प्रतिभा या गुणों को, हुनर को, योग्यता को परखें और उसे उचित सम्मान देकर उसका हौसला बढ़ाए, ताकि वह आगे बढ़े।