- ना.रा.खराद
हमीदपूर नामक बड़ा गांव था।छह सात हजार आबादी थी।गांव में वह सब था,जो किसी बड़े गांव में होना चाहिए। किसी भी गांव में होते हैं, वैसे सब तरह के लोग थे।पढ़ें लिखे थे, अनपढ़ थे।शरीफ थे , बदमाश भी थे।नेता थे,समाजसेवक थे।विचारवान थे,अविचारी थे।आस्तिक थे तो नास्तिक भी थे।कवि थे ,वक्ता थे।
भारत का कोई भी गांव जैसा होता है , बिल्कुल वैसा ही वह गांव था।भारत की असली पहचान था।उस गांव में स्कूल था,कालेज भी। बहुतायत शिक्षक शहर से आवागमन करते थे।शहर और गांव में कोई भेद न रहे इसलिए दोनों से सरोकार रखते थे।
गांव में हर दिन डाकिया डाक लेकर आता था। बरसों से उसी गांव में फर्ज निभा रहा था।लोग उसकी साइकिल से भी परिचित हुए थे, क्योंकि वह पीढ़ी से थी। कहते हैं, उसके बाप ने वह खरीदी थी।बाप की तरह उसका भी स्वास्थ्य चंगा था। डाकिया बड़ी ईमानदारी से कर्त्तव्य निभाता था।गांव का हर कोई उसक परिचित था। छोटे बच्चे उसे पुलिस जानकर भाग खड़े होते थे।
गांव में पहुंचने पर वह साइकिल की घंटी बजाता था।उसकी धून से गांव को डाकिया
की आने की खबर होती थी।किसी की मनिआर्डर आती तो वह बड़ा खुश होता था ,जिसकी होती उसकी खुशी से संतोष पाता था।उसका वेतन बहुत कम था,मगर संतोष कमाल का था।सब उसकी राह देखते।गले में लटकी खाकी
रंग की थैली ,जब वह खोलता सबकी निगाहें उसपर टिकती।पानी के सिवा ,वह किसी से कुछ नहीं लेता था। अवकाश के लिए उसके सिर्फ चार महिने शेष थे,वह भावूक होता था।
उस गांव से जूडे़ उसके रिश्ते बहुत गहरे थे।गांव के घर-घर में वह परिचित था। पिछले
तीस सालों में कभी कोई शिकायत नहीं।उसने अनेकों के नौकरी के पत्र लाएं थे।
अपनी सेवा से उसने गांव का दिल जीत लिया था। गांव के मुखिया ने चौपाल पर एक सभा
का आयोजन किया और डाकिया के अवकाश प्राप्ति के उपलक्ष्य में उसे बिदाई के
कार्यक्रम की बात कही। लोगों ने हामी भरी,पुरजोर समर्थन किया।चंदा वसूल किया
गया।वह डाकिया की नौकरी का आखिरी दिन था ।गांव में पत्र वगैरा बांट रहा था,आखिरी खत देते समय वह भावविभोर हुआ। बच्चों की भांति रोने लगा। उपस्थित लोग भी अपने को रोक नहीं सके।शाम सात
बजे बिदाई समारोह हुआ।नकद राशि भी उसे प्रदान की गई।उसने गांव वालों का आभार व्यक्त किया, कृतज्ञता व्यक्त की। गांववासीयों ने भी उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। नौकरी को सेवा क्यों कहते है, गांव वालें यह भी जान गए।