- ना.रा.खराद
मैंने एक गाना सुना था,'घुंघट की आड़ में दिलबर का...' तब से हर तरफ मुझे सब आड़ में दिखाई दे रहा है, यहां तक मृत्यु भी
जीवन की आड़ में दिखाई दे रही है।
इन्सान का जिस्म कपड़ों की आड़ में है,होटल का खाना किचन की आड़ में है।
काला धन इन्कमटैक्स की आड़ में है। राजनीति धर्म की आड़ में है, धर्म राजनीति की आड़ में है। लैंगिक शोषण आश्रमों की आड़ में है। भक्तों की लूट मंदिरों की आड़ में है।
भिक्षा शिक्षा की आड़ में है, स्वार्थ सेवा की आड़ में है। चापलूसी विनम्रता की आड़ में है। स्वार्थ सादगी की आड़ में है।बदमाशी शराफत की आड़ में है,भय साहस के आड़ में है।
भोग त्याग के आड़ में है, नफरत प्यार के आड़ में है।जो परदों में हैं, मुखौटे में हैं,वे हर चीज आड़ में है। कोई आंसू छिपाता है, कोई खुशी छिपाता है।छिपी हर चीज आड़ में है।किसी भिखारी के पास लाखों की दौलत निकलती है,तो कोई नामचीन धनवान कंगाल होता है। कोई फटे कपड़ो में करोड़ोंपती होता है। दिखावे की चीजें आड़ का काम करती है। कोई भी बूरा कार्य सीधे तौर पर नहीं किया जाता, बल्कि किसी अच्छे कार्य के आड़ में किया जाता है।आटा दिखाकर कांटा छिपाया जाता है।
असली मकसद मुखौटे की आड़ में होता है।
प्रकृति भी अपना रहस्य कायम रखती है। यथासमय वह अपना रंग रुप दिखाई देती है।बीज दिखाई नहीं देता,उसका अंकुर दिखाई देता है।बच्चा भी नौ महिने मां की पेट की आड़ में होता है। चीजें आड़ में पनपती हैं। नारियल में पानी होता हैं,शिप में मोती होता है। लकड़ी में आग होती है,मन में प्रेम होता है।
आड़ की चीजें जिसे दिखाई देती हैं ,वह ज्ञानी है। दिखाई देनेवाली चीजों में भी जिसे कुछ दिखाई नहीं देता ,वह अज्ञानी है।