कहीं पे गाना है
कहीं पे मखमली बिछौना तो
कहीं पत्थर सिरहाना है
कहीं पे गुहार लगाता कोई तो
कहीं आदमी सुस्ताना है
जिस्म बिकता कहीं पर
झुग्गी-झोपड़ी में बिलखते बच्चे
कहीं मौसम मस्ताना है
कहीं सत्य की आग में झुलसता कोई
कहीं झुठ का तराना है
हंगामें में चलती संसद
सड़क पर हंगामा है
-नारा