कही पे रोना तो-("धडकनेतलं आवाज, रिमझिम अश्रूची बूँदे")


कहीं पे रोना तो
 कहीं पे गाना है 
कहीं पे मखमली बिछौना तो 
कहीं पत्थर सिरहाना है 
कहीं पे गुहार लगाता कोई तो 
कहीं आदमी सुस्ताना है 
जिस्म बिकता कहीं पर 
झुग्गी-झोपड़ी में बिलखते बच्चे 
कहीं मौसम मस्ताना है 
कहीं सत्य की आग में झुलसता कोई 
कहीं झुठ का तराना है 
हंगामें में चलती संसद 
सड़क पर हंगामा है 
 -नारा
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1 टिप्पणियाँ
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Firoz Khan ने कहा…
आपकी कलम से हमे प्रेरणा मिलती है।