भारत में दो चीज़ें वक्त पर होती है,एक उसका वोट और दूसरी शादी।इस देश में शादीयां पौराणिक काल से होती आयी हैं।भारत में शादी पंडित तय करते हैं।पंचांग नामक पुस्तक में वे पूरा लेखा-जोखा देखते हैं।
लड़का लड़की के गुणों के मेल से शादीयां
संपन्न होती है।मेल बिठानेवाले पंडित अपनी
फिस वसुलाते है,और कन्नी काट लेते हैं।
मुझे उन पंडितों की तलाश है, जिन्होंने असफल शादीयां रची अथवा उस पंचांग की
जिसमें यह लिखा है।गुण तो क्या दुर्गूण तक मिलते नहीं दिखते।शादी के इस बेमेल जोड़
को जोड़ा किसने कहा इसका भी कोई अतापता नहीं।
लड़का लड़कीयों को इन गुणों से तो कोई वास्ता नहीं होता।गुण गए भाड़ में,यह धारणा
होती हैं।जवानी भूखे शेर की तरह होती है,सामने शिकार दिखे झपट पड़े।शादी की कलई तो तब खुलती हैं जब हल्दी का पीला रंग फीका पड़ने लगता है और बीबी अपना असली रंग दिखाना शुरू कर देती है।बाबूल का क्या दुआएं देकर विदा कर देते।मगर शौहर तो उम्रकैद पाता है।न भाग सकते हैं नाभगा सकते हैं।घर की बेइज्जती घर में रहे,इस
मुहावरे को निभाते हैं। बेमेल के साथ मेल बिठाने में उम्र कट जाती है उसपर तुर्रा यह कि,'सात जन्मों का बंधन।' इससे तो रूह कांप जाती है। कहते हैं , शादीयां स्वर्ग में तय होती है।' अब भगवान भी कमजोर छात्रों की तरह गलत जोड़ियां मिलाने लगे हैं।
मुझे आजतक एक भी ऐसा जोड़ा नहीं मिला जो
अपनी शादी से संतुष्ट हो।शादी के पच्चीस साल बाद भी वे पछताते नजर आते हैं।उसकी
वजह शादी नहीं बल्कि बेमेल शादी है। जिसे
कहां तो जोड़ा जाता है मगर होता है बेजोड़।
असंगति से भरे दो व्यक्ति संगति में रहे तो दुख सिवा क्या मिलेगा? मराठी में,"अरे संसार संसार...." उसी पंचांग का नतीजा है।
शादी वास्तविक गुणों से तय हो।शिक्षा,योग्यता, भावना, इच्छाएं, चरित्र,वित्त तब वे सफल होगी।