- ना.रा.खराद
यूं तो कलाएं चौंसठ हैं मगर विद्वानों में उसको लेकर मतभेद हैं।विद्वान अपने मतों के पक्षधर होते हैं,विवादी होते हैं।हमने भी विद्वान न होते हुए भी उस विवाद में छंलाग लगा दी और कलाएं चौंसठ नहीं अपितु पैंसठ है का दावा किया।सोए विद्वान जाग गए। मुझे
झूठ साबित करने पर तूल गए।देखते देखते साहित्य
के क्षेत्र में खलबली मची।जो अभी कम विद्वान थे,कच्चे थे , उनके बाल पके न थे वे भी उसमें कूद गए।विवाद में कूदना ही विद्वान होने का पहला लक्षण है जो तथाकथित विद्वान थे,उनका इस बात पर एकमत हुआ कि कलाएं कितनी भी हो सकती हैं मगर पैंसठ नहीं।
जब मैंने अपने मत को प्रमाणित करना चाहा तो उसका भी विरोध हुआ।मैंने पैंसठवीं कला ,"झूठ बोलने की कला" को माना तो सभी भाषाईं पंडित बौखला गए। संस्कृति के ठेकेदारों के खेमें में इस बात पर बहस हुई कि झूठ बोलना भी कहीं कला होती है? इस कला का इतना
प्रसार हुआ है कि कोई सच बोले तो लोग परेशान
होते हैं,जब झूठ से सब इतना ठीक चल रहा है तो
सच बोलकर कोई काम क्यों बिगाड़े? लोग झूठ बोलने के जितने आदी हुए उससे ज्यादा झूठ सूनने के हुए हैं।हर क्षेत्र में झूठ की फसल लहलहा रही है। कहीं भी जाओं झूठ सिर चढ़कर बोल रहा है।
इसकी शुरुआत,'सत्य मेव जयते ' से हुई है। अदालत से 'बाइज्जत' रिहा होनेवालों की फेहरिस्त देखें तो पता चले कि मुंह किसका काला है,झूठ का बोलबाला है।इस देश में लोकतंत्र है,यह भी एक सफेद झूठ है।झूठ इतना सत्य है कि सत्य कहीं खो गया है। देश संविधान से चलता है, कहते सब हैं मगर वह पंचांग से ज्यादा चलता है।झूठ हर
कोई बोले जा रहा है।
कोई व्यक्ति इससे अछूता नहीं,हरकोई बढ़-चढ़कर झूठ बोले जा रहा है।किसका झूठ चला ,किसका नहीं इसकी चर्चा हो रही है।नेता झूठ बोल रहे हैं, उनके चमचें झूठ बोल रहे हैं। पत्रकार झूठ फैला रहे हैं। यहां किसीसे सच बुलवाना कितना कठिन है। सालों बीत जाते मगर आरोपी सच नहीं बोलता , अगर कोई आरोपी तुरंत सच बोले तो उसे झूठ माना जाता है।झूठ का सिक्का इस कदर चलन में है कि असली तो चलन बाहर हुआ है।जब से लोकतंत्र आया है,तब से लोग इस झूठ में जी रहे हैं कि प्रजा का राज है।
आंख खोलकर देखें तो पता चले कितना सच है।
उपदेशक,संत, महात्मा ,शिक्षक सब झूठ बोल रहे
है। कोई इस सच को स्विकार नहीं करता क्योंकि
सच से उनका कोई वास्ता नहीं है। सुननेवाले झूठ
के इतने आदी हुए हैं कि झूठ ही उन्हें हजम होता
है।नकली फूलों के आदी हुए लोग असली की खुशबू से महरुम रहते हैं। अंधविश्वासों से लदा यह देश झूठ का प्रतिक है।जिस देश की संसद से झूठ बोला जाता हो,उस देश में कौन झूठ नहीं बोलेगा?
झूठ बोलकर चुनाव जितनेवाले नेता ,क्या सच
बोलेंगे।जरा सांसदों की शपथ को सुनिए और उनके
व्यवहार को देखें , झूठ का सच देखें।
अदालतों में मुजरिम कसम खाता है, उसे जबरदस्ती खिलायी जाती है।आरोपी को झूठ भी
बोलना हो तो कहना पड़ता है, मैं सच बोल रहा हूं।
स्कूल की प्रार्थनाएं झूठी।प्रतिज्ञा झूठी।तोतागिरी
सच नहीं होती।कथनी और करनी का अंतर बताता
है कि झूठ की कितनी शान है। यहां हर किसीको
अपने तरीके का झूठ चाहिए। यहां श्रोताओं को
तालियां बजाने को कहा जाता है। झूठें प्रशंसक
निर्माण कीए जातें हैं नकली घी के डिब्बों पर असली घी लिखा होता है। यहां के मंदिरों में देवता नहीं ,पुजारी होते हैं ।
डाकूओं ने मठ स्थापित कीए है।कई भडवों ने स्कूल खोलें है। यहां शराब दुकानें पुजा से खोली जाती है और मठों में बलात्कार होते है।देश का असली चेहरा कहीं खोया है। यहां हजारों वर्षों पूरानी बातों को सच माना जाता है,और आंखों देखी को झूठ। यथार्थ को गवाह चाहिए। यहां कवि काल्पनिक कविताएं रचते हैं,सच से किनारा कर लेते है ,सच किसीके खिलाफ होता है इसलिए वे डरते हैं ।पहले दरबारी कवि थे,अब सरकारी कवि हैं। दलों की दलदल में है।हर विज्ञापन झूठ बोलने की कला है । कथाकारोंकी कथाएं झूठी।नकली पौधों को नकली पानी।
यहां बूरी नजरवाला आगे बैठा है और पीछे बूरी नजरवाले का मुंह काला है। यहां की पाठशाला की
दीवारों पर सुविचार लिखे रहते और कमरों में कुविचार चलतें है । दफ्तरों में महात्माओं की तस्वीरें हैं और भ्रष्टाचार भी।झूठ इस देश के चरित्र में है।जिसका झूठ जितना सच लगे उतना फायदेमंद।
सभी झूठों को झूठा प्रणाम!