वक्त वक्त की बात - ना.रा.खराद

                                      वक्त वक्त की बात
                                                       - ना.रा.खराद

वक्त,जो परिवर्तनशील है, वक्त के पेट में क्या छिपा है, किसीको भी पता नहीं होता।अगले पल क्या होगा, कोई नहीं जानता,सारे अनुमान झूठे साबित हो जाते हैं,सभी अटकलों को विराम मिलता है।वक्त पहिया कैसा घूमें कोई नहीं जानता।ऊंट किस करवट बैठें कोई नहीं जानता।
वक्त के साथ सब बदलता है,जो आज है ,कल नहीं था और कल नहीं होगा। जन्म से मृत्यु तक
हमारा शरीर भी बदलता रहता है, व्यवहार बदलता है और सबकुछ बदलता रहता है।
नौकर मालिक बन जाते हैं,राजा रंक बन जाते।बलवान कमजोर बन जाते हैं‌।
वक्त के साथ सबकुछ बदलता है। शिखर धराशयी हो जाते हैं।आसमान में उड़ने वाले जमीन पर आते हैं। वक्त की नदी का बहाव कभी थमता नहीं। वक्त वक्त से पहले मालूम
नहीं होता। वक्त सदैव साथ होता है।हर किसी का वक्त आता है, वक्त से बढ़कर कोई गुरु नहीं। वक्त आदमी को मजबूर कर देता है। वक्त कोई बदल नहीं सकता। वक्त बलवान है। वक्त बड़े-बड़े सूरमाओं को लाचार बना देता है। वक्त गुरुर उतारता है,घमंडी को नीचा दिखाता है।
वक्त के साथ चलें,वही सयाना है। वक्त साथ लड़कर हार तय है। वक्त को देखकर निर्णय 
लेने पड़ते हैं,फैसले बदलने पड़ते हैं। वक्त जालिमों का साथ नहीं देता। वक्त की मार गुप्त
होती है। ऊपरवाले की लाठी की आवाज नहीं होती।
वक्त बड़ा चंचल है,पल में धोखा देता है। वक्त जहां ले जाएं जाना पड़ता है, वक्त जो करवाएं
करना पड़ता है। वक्त आने तक सहना पड़ता है।
वक्त का इंतजार करना पड़ता है।हम वक्त को रोक नहीं सकते।
जो वक्त के मुताबिक चलें, वक्त का तकाजा समझें, उसी का वक्त है। वक्त से दोस्ती करों।
वक्त जैसा हो, स्विकार करों।
                         
Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.