- ना.रा.खराद
वह कुआं गांव के बीचों बीच था, पूराना इतना कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी उसका इतिहास किसी किंवदंती की तरह फैलता रहा। कुआं इतना गहरा था नहीं, मगर उसका पानी गांव की प्यास बुझाता था, गांव की स्त्रियों के लिए वह किसी पनघट से कम न था।गांव के मनचले तथा निठल्ले इन्हीं औरतों को दिनभर निहारते रहते, चूंकि वे अधेड़ थे, इसलिए कोई उन्हें टोकता नहीं था।
वह कुआं मात्र एक कुआं न होकर, गांववासी उसका बहुतेरे उपयोग करते थे।गांव का हर शख्स उस कुएं के पास अपना कुछ समय बिताता था, गांव की हर खबर वहीं से समूचे गांव फैलती थी।रात होने पर वहां काफी जमावड़ा लगा रहता था। बढ़-चढ़कर बातें होती, हास-परिहास से गांव गुलजार हो जाता था।गांव के बुजुर्ग उस कुएं के बारे में बड़ी डरावनी बातें बताते थे, गांव के बच्चों में ये बातें इस कदर फैली थी कि गांव का कोई बच्चा वहां रात अकेले जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। बच्चों को डराने के लिए उस कुएं की
मनगढ़ंत कहानी बच्चों को सुनाते थे।
शादीशुदा औरतें इस कुएं का उपयोग पति को धमकाने के लिए करती थी, यद्यपि आज तक कोई स्त्री
इस कुएं में अपनी जान नहीं गंवा सकी थी, क्योंकि यहां बचानेवाले अक्सर मौजूद रहते थे।
उस कुएं में किसी दिन एक बालक गिर पड़ा, भीड़ इकट्ठा हुई, गांव का प्रधान तथा टंटा मुक्ति अध्यक्ष घटनास्थल पहुंचे, लोग तरह-तरह की बातें करने लगे, जितने मुंह उतनी बातें। धीरे-धीरे गांव के सभी लोग जमा होने लगे।
गांव भले छोटा हो, मगर गांव की राजनीति बड़ी थी। देश की हर पार्टी के गांव में नेता थी, किसी भी मुद्दे को राजनीतिक मुद्दा बनाकर, उसे भुनाने की कला वे जानते थे।सभी दलों की गांव में दलदल थी, गांव का हर नागरिक किसी ना किसी पार्टी का सदस्य था।
गांव में कुछ पढ़ें लिखे लोग थे,वे संख्या में कम थे, मगर गांव में उनकी साख थी, सलाह मशविरा करते थे, गांव के लोग उन्हें अहमियत देते थे। गांव में कुछ अध्यापक थे,जो उस गांव के नागरिक न थे, मगर बरसों से इसी गांव डेरा जमाएं थे, गांव के रंग में रंग गए थे, चूंकि बच्चा गिरा था, इसलिए सबसे पहले अध्यापक को इत्तिला की गई,हो सकता है, मामला स्कूल से जुड़ा हो।जब अध्यापक ने अपने मोटे चष्मे से कुएं में झांका,तो फौरन पहचान लिया।
उन्होंने उसे कई सारे सवाल किए, उसने उसका एकही जवाब दिया कि मुझे पता चला, मैं कैसे गिरा?
उसी वक्त वहां वकील आया,जो उसी गांव का निवासी था, लोग उससे कानूनी सलाह लेते थे। बच्चे का कुएं गिरना महज एक इत्तेफाक मानने को राजी न था,जब तक पुलिस न पहुंचे, तब-तक इस बच्चे को बाहर निकालना गैरकानूनी है, सुनकर सब ख़ामोश रहे। बच्चा पानी में डुबा नहीं था, मगर ठंडे पानी में खड़ा था, उसे बाहर निकालना कोई मुश्किल काम न था, मगर राजनीतिक दलों ने उसे बड़ा जटिल बना दिया था।
किसी दल ने गांव के प्रधान पर इल्जाम लगाया की , कुएं के कटघरे में भ्रष्टाचार हुआ है, इसलिए वह बच्चा उसमें गिरा है। किसी ने तो इस बच्चे को धक्का देकर किसीने गिराया होगा, इसलिए जबतक इसकी पूरी छानबीन नहीं होती, बच्चे को बाहर न निकाला जाएं। उस कुएं के आसपास सभी दलों के तख्त थे, जिनपर उस दल के पदाधिकारियों के नाम दर्ज था ।
उस कुएं से ज्यादा गहरी,उस गांव की राजनीति थी।