आडंबरों की दुनिया

                                        आडंबरों की दुनिया 
                                                                           - ना.रा.खराद
मनुष्य जीवन हजारों तरह के आडंबरों से अटा पड़ा हैं, और हररोज नए नए आडंबर उभर कर सामने आ रहे है। इनसे छुटकारा पाने के बजाय उनमें मनुष्य जीवन उलझता जा रहा है, और जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा इसमें समाप्त हो रहा है।जीवन का हरपल बेशकीमती है, मगर हम उसे आडंबर जैसी दकियानूसी चीजों में लगा देते हैं।जिन चीज़ों की आवश्यकता नहीं,ऐसी फिजूल की बातों में अनमोल पल गंवाना समझदारी नहीं है।
 जीवन तो एक शांत प्रवाह है, उसमें इतनी उथल-पुथल व्यर्थ है।यह उथल-पुथल हमारी ईजाद है, जिसे हम अन्य किसी पर थोप दिया करते है, और धड़ल्ले से उसे अपनाते हैं,कभी पलभर उसके बारे में सोचते नहीं कि सच में हम क्या कर रहे हैं। आडंबर की शुरुआत जन्म से पहले से शुरू हो जाती है,और मृत्यु के बाद भी जारी रहती है,उससे कुछ नुकसान न होता हो, मगर फायदा भी तो नहीं है, और जिन चीज़ों से फायदा नहीं, वहीं तो आडंबर है, और जिन चीज़ों से फायदा नहीं, उसमें समय खराब करना, इससे बड़ा नुक़सान और क्या हो सकता है?
 आडंबरों से सबसे बड़ा नुक़सान जो है, उससे जो आवश्यक है,वो हो नहीं पाता। आडंबरों में वो खो जाता है, आडंबर सरल होते हैं, उसमें कुछ करना होता है, होना नहीं,इसलिए आडंबरों को सहजता से अपनाया जाता है। वास्तविकता से मुंह मोड़ने के लिए आडंबर से बढ़कर कोई चारा नहीं।अब तो आडंबरों की चपेटे में समुची मानवजाति है। आडंबरों के उसके बुनें मकड़जाल में मनुष्य उलझा है,अब उसमें वह कैद हैं।
 अनावश्यक, फिजूल, व्यर्थ की चीज़ों की भरमार से असली जिंदगी का दम घुटने लगा है, जिंदगी की छटपटाहट बयां करती हैं कि फिज़ा में कुछ विषैला है,और वह विष है, आडंबर!
आडंबरों की अपनी दुनिया है, जहां सभी आडंबरी बढ़-चढ़कर उसमें शरीक होते हैं, उसे बढ़ावा देते हैं। कोई भी इसे रोक नहीं सकता। हां,नए आडंबर ला सकता है। आडंबर एक ढकोसला है, पाखंड है, मगर जाने कौन और जाने क्यों?
 जबकि आडंबरों में उनकी जिंदगी कट रहीं हैं, जागरण हुआ तो फिर कैसे संभले। आडंबरों की मूर्खता में चैन पा रहे हैं, अपने आपको भूल रहे हैं,तो उससे कन्नी कैसे काट सकते है? चारों ओर आडंबरों का बोलबाला है, हरकोई इस आडंबर धर्म को निभा रहा हैं। अनमोल जीवन को कौड़ी मोलभाव में गंवा रहा है।
जबतक आडंबरों की धुंध छंटती नहीं, तब-तक सूर्य दर्शन होगा नहीं।
 प्रकृति ने जो दिया है,वह काफी है, वहीं पुजनीय है, अन्य आडंबरों की जरूरत नहीं है। आडंबर एक तमाशा है,जो केवल मनोरंजन के लिए खड़ा किया जाता है। थोड़े समय हकीकत भूलाने का, उससे दूर भागने का उपाय है। आडंबर एक धोखा है।
 पृथ्वी पर के तमाम कर्मकांड आडंबर है।जिसका कोई वजूद नहीं है, फिर भी सबने अपनाने से कोई शिकवा नहीं है, मगर गहराई में जाकर सोचे, क्या सच में आडंबर जरुरी है? आडंबरों की अपनी एक खूबी है, इसमें कुछ नया हो,तो ज्यादा रोमांचक बन जाता है। कोई साधु महिनों भोजन नहीं कर रहा है,तो कोई कांटों पर लेटा है,तो आग में कूद रहा है।
 आडंबरों की अपनी एक बहुत बड़ी दुनिया है,सारा उत्पात उससे पैदा हो रहा है। सच्ची मानवता का वह दुश्मन है,बनावटी, खोखले और दिखावें के फूल इतने पसंद किए जा रहे हैं कि असली फूल खिल नहीं पा रहें हैं।
    जागो दुनिया जागो !
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