दयालु संपत
- ना.रा.खराद
मेरे कई सारे मित्र हैं मगर उनमें संपत निराला है। सबमें कुछ खास होता है,संपत में उसका दयालुपन खास है। वैसे हम सबमें दयालुता है ,मगर संपत की तुलना में न के बराबर। उसके इस स्वभाव पर हमें दया आती हैं,एक इसी बात पर उसे हमारी दया नहीं आती। वैसे दयालु होना मानवीय गुण समझा जाता है, मगर संपत के लिए वह एक दोष है।
उसकी दयालुता किसी की सिखायी हुई नहीं है,वह पैदायशी दयालु है।जब उसने आंखें खोली तो सबने उसमें दया देखी।उसकी दयालुता से सिर्फ हम नहीं बल्कि जिनपर वह दया दिखाता है,वे भी परेशान हैं।उसकी सहानुभूति हर दुखी व्यक्ति के लिए हैं।वह अपनी सुविधा के अनुसार दया दिखलाता है।
हमने उसे कभी भी किसी की मदद करते नहीं देखा लेकिन हर उस जगह देखा जहां दुख है।
उसकी नजर सदैव दया का पात्र खोजती है।
उसकी दया से लोगों का दुख हल्का नहीं होता
बल्कि और बढ़ जाता है। किसी की कोई दुख
की खबर मिले तो वह सबसे पहले पहुंचता है।
रास्ते से चलते वह दया बांटता फिरता है। लोगों ने उसे दयालु संपत कहना शुरू कर दिया है। उसके दयाभाव से न रोनेवाले रोना शुरु कर देते हैं।लोग उसकी दया से लोग बचना चाहते हैं पर वह पिंड नहीं छुड़ाता। आसपास के सभी लोगों का दुख उसे पता होता है।किसी की बीबी घर छोड़ गई या कोई परीक्षा में असफल हुआ तो संपत वहां हाजिर।
खुद जिसे परवाह नहीं,संपत उसे भी अपनी
दया से दुखी कर देता है।रोनेवाले के साथ रोना
उसे वह दया मानता है। संतों की तरह दया पर
प्रवचन देता है,उसकी किताब छपवाकवर बाजार में वह बेच रहा है।दया धर्म का मूल है, अपने इस सिद्धांत को चरितार्थ करने के लिए वह पूरी शक्ति लगाता है।
किसीको कंकड़ चूभे तो इसकी आंख से पानी
निकलता है।वह दुखी नहीं बल्कि सुखी लोगों
पर भी दया दिखाता है।सुख के बाद आनेवाले
दुख पर उसे दया आती है।जिन नौजवान लड़की लड़कों की शादी तय नहीं हो पा रही हैं,उनकी उसे दया आती है।वृद्धों को देखकर तो दया चरम पर पहुंचती हैं, उनके सामने ," आप चंद दिनों के मेहमान हो।" यह रोते-रोते
कहता है। मृत्यु से पहले उसका एहसास कराके उन वृद्धों की यातनाओं को बढ़ाता है।
किसी मोटे और दूबलें इन्सान को समानरुप से
वह दया दिखलाता है।ऐसी दया से भगवान ही बचाए।