- नारायण
मैंने एक परिचित की बेटी की शादी में शिरकत की। शादी का कार्ड ,जो मुझे बाइज्जत सौंपा गया था, उसपर पर किसी नामचीन पंडित द्वारा निकाला मुहुर्त था , इसलिए अपने तमाम कामों की आहूति देकर मैं ठीक समय से पहले शादी के उस ठिकाने पर पहुंच गया,मगर देखा कि वहां मौजूद लोग मेरी तरह सब आम लोग थे ।
कोई नेता, अधिकारी,दादा,सेठ, साहुकारों ने शिरकत नहीं की थी।शादी के मुहुर्त का अगर पालन नहीं करना है,तो मुहुर्त निकालते ही क्यों है? वो भी मिनटों में! घंटों लेट करानी है तो मिनटों में क्यों? जैसे भारतीय रेलवे का लेट होना आम बात है, वैसे भारतीय शादीयां भी अक्सर घंटों लेट होती है।
भारतीय लोगों के सहनशीलता की दाद देनी होगी।एक थाली भोजन के बदले में घंटों का सब्र,सब्र की सीमा है। चूंकि भारतीय लोगों को फूरसत बहुत है इसलिए शादी ब्याह को वे जितना हो सके लंबा खिंचते है।
मैं जैसे ही शामियाने के मुख्य द्वार पर पहुंचा , बिगूल बजा और कुछ सुंदरियां अपनी नकली , कारोबारी मुस्कान लिए गुलाब पुष्प मेरी खुरदरी हथेली पर थमा दिया। स्वागत से मैं गदगद हो गया। सामने मेजबान सिर पर साफा बांधे ,माथे पर तिलक लगाएं पहली बार हाथ जोड़कर मेहमानों का स्वागत कर रहे थे। मैंने पहली बार
उन्हें मुस्कराते हुए देखा था। चूंकि भीतर से वे बहुत पीड़ा
में थे ।
जब मैं मंडप में पहुंचा तो कई परिचितों से पाला पड़ा। किसी ने भड़ास निकाली, किसीने पुछताछ की तो किसीने ताने मारे। शक्कीयों ने सूंघा क्योंकि उन्हें मेरा चरित्र पता था।मास्क पहने हुए था तो पड़ताल में अड़चनें आयी। वहां बैठकर थोड़ी निंदा सुनी और पेशाब के बहाने वहां से खिसक गया।
मंडप लबालब भर गया था। महिलाएं, बच्चे सब सज-धजकर एक दूसरे को निहार रहे थे।माईक से पंडित
दुल्हा-दुल्हन को और उनके मामाओं को अदालत की पेशी की तरह बुला रहा था मगर किसी बड़े नेता के लिए शादी मुहुर्त टल रहा था। भारतीय लोग एक तीर से कई
निशान लगाते हैं,वे करते हैं , सबको पता होता है मगर किसलिए , किसी को पता नहीं चल पाता। छोटे-छोटे नेता तो पधारे थे,मगर बड़ा नेता वही कहलाता है ,जो देर से आएं,सबके नजरें उसपर टिकी रहें।
चापलूसों, चाटूकारों ने नेताओं को सर आंखों पर चढ़ा रखा है। जैसे मृत बैल के पास आवारा कुत्तों का जमघट
होता है वैसे नेताओं के आसपास स्वार्थी लोगों का मेला
लगता है। जिनके वोट से नेता चूने जाते जाते, उनसे कन्नी काट लेता है।
शादी का मुहूर्त टल न जाएं इसलिए कईयों ने बहुत भागदौड़ की।बाराती जो खाली पेट थे,भूख से व्याकूल थे। बच्चे अपनी मां से भोजन मांग रहे थे मगर मेजबान की आंखें नेता के आगमन की तरफ लगी थी। जैसे वह शादी नहीं बल्कि किसी नेता की सभा हो।
वधूवर अपना मेकअप संभालें हुए , बेसब्र हो रहें थे। कुछ बाराती अपने शारिरिक आवेग को बड़ी मुश्किल से रोके हुए थे।उनकी मुद्राओं से उनकी पीड़ा साफ झलक रही थी। इसके बीच पटाखों को की आवाज हुई।नेता का आगमन हुआ, सबने राहत की सांस ली। फिर स्वागत सत्कार किया गया। तस्वीरें खिंचवाई गई। पंडित को हुक्म हुआ।मंत्र पढ़ें जाने लगे।बारातीयों के पेट में चूहे दौड़ रहें थे और कौएं चिल्ला रहे थे।ऐसी दशा में में वे अक्षता फेंक रहें थे ।
शादी के केंद्र में वधूवर होने चाहिए,सारा फोकस उनकी ओर चाहिए मगर हर क्षेत्र में नेताओं की घुसपैठ चापलूसों की बदौलत है।इसे समय पर रोका नहीं गया तो सत्यनारायण की पूजा में भी नेताओं की शिरकत होगी और उनके चाटूकार उनके इंतजार में आंखें बिछाए बैठ जाएंगे।