धरती स्वर्ग है

                धरती ही स्वर्ग है
                               - ना.रा.खराद
मुझे अक्सर ऐसा महसूस होता है, जैसे मैं किसी और लोक से इस लोक में पहुंच गया हूं,और महसूस करता हूं कि यही स्वर्गलोक है, यानी मैं अभी स्वर्गवासी हूं, मेरे लिए मैं जिस जगत में हूं, वहीं स्वर्ग है। स्वर्ग के बारे में जो कुछ बताया जाता है,वो सब यहां हैं,और जब किसी और स्वर्ग की बात की जाती है,तब भी इसी जगत के सौंदर्य और सुखों की बात की जाती है।
 किसी की मृत्यु पर, उसे स्वर्गवासी कहना मेरे पल्ले नहीं पड़ता, क्योंकि इस जगत में किस चीज की कमी है, जिससे तुम इसे स्वर्ग नहीं मानते। स्वर्ग को अन्यत्र कहीं और मानना,इस स्वर्ग की अनदेखी है। अगर आपको जीवित स्वर्ग का अहसास नहीं होता,तो उस काल्पनिक स्वर्ग पर विश्वास किस तर्क पर,इसे भी तो तुम स्वर्ग कहा सकते हो। आखिर इस धरती पर किस चीज का अभाव है,जिसे तुम स्वर्ग नहीं मानते।सारे देवता भी तो यहां पधारे थे,सुख चैन रहे थे, फिर भी इस जगत को आप स्वर्ग नहीं मानते?
 इस जगत को स्वर्ग न मानने की वजह , स्वर्ग कहीं और मानना है। अगर हम खुली आंखों से देखे तो पता चलेगा, यहीं स्वर्ग है। स्वर्ग की जितनी कल्पनाएं की जाती है,वे सारी यहां मौजूद हैं, फिर आप किस स्वर्ग की बात करते है।
समंदर के पानी से लबालब धरती, बदलते मौसम, वनों, फुलवारी से सजे मैदान,चांद तारों मंद रोशनी और सूरज की रोशनी, बारिश या झील झरने, नदियां, पहाड़ यह सब नजारा स्वर्ग है।
हजारों तरह पशु पक्षी उनके रंग आकार और आवाजें स्वर्ग का अहसास कराते हैं।भोर का तारा हो,या रात का नजारा हो कितना सुंदर,मोहक।
छोटे बच्चों की हंसी में, किसी सौंदर्यवती की मुस्कान में झांको स्वर्ग का पता चलेगा।
कोयल का मधुर स्वर, बहनेवाली वायु,आकाश में विचरण करते पंछी देखो कभी, तो पता चले स्वर्ग यहीं है।
  आप मृत्यू के बाद स्वर्ग जाएंगे,ऐसा न मानकर,आप स्वर्ग से आएं हैं,ऐसी धारणा में रहकर
इस स्वर्ग में आनंदित रह सकते हैं, स्वर्ग में होकर भी अगर इसे स्वर्ग नहीं मानते,तो फिर किसी और जगह स्वर्ग आप कैसे मानते हैं। स्वर्ग में भी मृत्यु के बाद जाना है,तो यहां भी तो हम मृत्यु के बाद आएं होंगे, अगर मृत्यु के बाद नहीं आएं,तो मृत्यु के जाएंगे कैसे? हमें जिस धरती का पता है, उसे अगर हम स्वर्ग नहीं मानते, फिर किसी काल्पनिक स्वर्ग पर भरोसा कैसे और क्यों करें?
लहलहाते हरे-भरे खेतों को देखकर, बच्चों की किलकारियां सुनकर और सौंदर्यवती के कटाक्ष से भी इसे स्वर्ग नहीं मानते,तो फिर आप काल्पनिक स्वर्ग में खोए रहो।जो अभी हाथ है,उसका मोल करों, आंखों से देखो, कानों सुनो और हृदय उसे महसूस करों,तब पता चले कि स्वर्ग तो यही है।

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