तनहा मैं अकेला

                                    तनहा मैं अकेला
                                                             - ना रा खराद
  मैंने सदा से खुद को तनहा पाया है। भीड़ में भी अकेलापन महसूस किया है।
 रिश्ते नातों के अभाव में मैंने जिंदगी गुजारी है।जन्म देकर मां स्वर्ग सिधारी, 
पिता ने सौतेली मां के भरोसे छोड़ दिया।वह लाऔलाद थी इसलिए उसने
सगे बेटे की तरह परवरिश की, पिताजी ने भी लालन पालन में कोई कोर कसर न छोड़ी।
 किसी जानवर की तरह मैं पल बढ़ रहा था।भीतर खालीपन लिए दिन काट रहा था।
 किसी चीज की कमी न थी सिवा प्रेम के।
मैं सदा सत्य की राह चला, मगर किसीने मेरा साथ नहीं दिया। अभावों में मेरा मखौल उड़ाया। कोई ऐसा नहीं जिसे मैं अपना दुख बता सकूं। मैंने अपने आंसुओं को अपनी हंसी में छिपाया। मैं जिसे अपना कहूं ऐसा कोई था नहीं, मैं बस जी रहा था, अपने आंसू पी रहा था।
  प्रेम ! जो मुझे कभी किसी से न मिला। मैं एक ऐसी स्वतंत्रता में जी रहा था, जहां प्रेम के सिवा सबकुछ मिलता था। जैसे मैं बच्चा कभी था ही नहीं,जन्म से ही प्रौंढ था। लाड़ प्यार के अभाव ने मुझे बड़ा बना दिया।
दो बड़े भाई,तीन चचेरे बड़े भाई, मैं सबसे छोटा मगर छोटेपन का मुझे कोई आशिष न मिला। कोई
ऊंगली पकड़कर मुझे अपने साथ दो कदम भी नहीं चला। बचपन में किसी ने कंधेपर नहीं उठाया इसलिए खुद चलने लगा, किसीने ऊंगली नहीं पकड़ी इसलिए अकेले चलने लगा। मैं बाप के पैसों पर पला,प्यार पर नहीं।
बचपन में डर लगे तो छिपने कोई गोद न थी।
 बिन मां का बच्चा कहकर करीबी ताने तो मारते कभी करुणा न दिखाते। सौतेली मां की
सादगी, भोलापन और सरलता ने मुझे पाला।कभी-कभी वह तीखापन दिखाती,जलीकटी सूनाती मगर उसके मन में कोई खोट न थी। उसकी बातों का मैं बूरा नहीं मानता था।दुख होता तो आंगन में बिस्तर पर लेटकर आसमान
को ताकता था, उसमें अपनी मां को ढूंढता था।मेरे दोस्त मुझे कहते थे कि तेरी मां ऊपर
गई है। मैं बहुत रोता था मगर मेरे आंसूओं को आजतक किसीने नहीं पोंछा। मैं बचपन से
अकेले रोने का आदी हो गया हूं। आंसू मेरे साथी रहें हैं। मुझे किसी से शिकवा नहीं।बस,एक हकीकत मैं बयां कर रहा हूं।प्रेम कोई मांगने की चीज नहीं जो मैं किसी से मांग लूं।वह तो देने की चीज है।

Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.