अंदाज अपना-अपना

                           अंदाज अपना-अपना
                                                   & ना.रा.खराद,अंबड
   वह पिछले दो दिनों से गांव के बिचोंबिच स्थित जो सुखा कुआं है, उसी में छटपटा रहा है,उसकी
चिखोंपूकार अब थम गई है।आशंका तो ये भी है कि जिवित है या नहीं?ऐसा नहीं कि उस बालक
को बचाने की कोशिश न हुई हो,परंतु गांव की राजनीति के चलते मदद पहुंचाने में देरी हुई थी।
  हर गांव की तरह उस गांव में भी सत्ता और विपक्ष दोनों में संघर्ष चलता रहता था।मसला चाहे जो भी हो, दोनों दल अपनी जोर आजमाइश करते थे।सवाल हार-जीत का न होकर , सिर्फ अड़ंगा डालना यही शुद्ध मकसद
रहता था। भारतीय लोकतंत्र इस गांव में भरसक पैर जमा चुका था। देश में जितने दल हैं,सभी दलों के नेता उस गांव में अपनी पार्टी का झंडा गाड़े हुए थे, अपने समर्थकों का समर्थन करतें थे।अपनी राजनीतिक गतिविधियों को जारी रखते थे।सच चाहें,जो भी हो उनके पक्ष में खड़े होते थे।
  कुआं उतना गहरा नहीं था,जितनी वहां की राजनीति गहरी थी।उस गिरे हुए बच्चे को बाहर निकालना बच्चों का खेल था ,मगर गांव राजनीति की वजह से मुद्दा राजनीतिक बन गया था, भारतीय राजनीति का असली चेहरा उस की राजनीति में दिखाई देता था। उस बच्चे को बचाना गौण बात बनी थी, राजनीति शीर्ष पर थी। जैसे देश में गरीबों की
भलाई इस मुद्दे पर राजनीतिक एकता नहीं हो पाती, वहीं बात उस बच्चे को बचाने को लेकर हुई। राजनीतिक मतभेद मतों को मद्देनजर रखकर वक्त वक्त पर जताने पड़ते है, मछुआरों जैसे जाल बिछाते हैं, वैसे इन
राजनेताओं को अपने अपने जाल बिछाने पड़ते है।
    वह बच्चा जब गिरा तब वह चीखा भी,उसकी चीख सुनकर गांव के राजनेताओं जमावड़ा हुआ।किसी विरोधी नेता ने यह कहकर मददकार्य रोक दिया कि" गांव के मुखिया ने इस्तीफा देना चाहिए।" इसपर सत्ता और विपक्ष
में हाथापाई तक हुई।मदद से पहले उस बच्चे की राजनीतिक पार्श्वभूमी खंगाली गई। चूंकि वह कुआं बरसों से सूखा था। इल्ज़ाम यह भी था कि पिछली सत्ता पार्टी वालों ने उसकी खुदवाई में  पैसों का गबन किया था। गांव के लोग उस कुएं से पानी भले न पीते हो,मगर अन्य कई सारे  उपयोग करते थे।उसके दिन और रात के भिन्न
उपयोग थे,हरकोई अपने हिसाब से उसका उपयोग करता था। कई बार उस कुएं को जमींदोज करने की बात उठी मगर हर निर्णय की तरह यह भी लटका रहा और उसका खामियाजा जनता उठा रही हैं और लाभ नेता।
कुछ अराजनैतिक कोशिश भी हुई मगर मामला कानूनी है,यह कहकर उन्हें टरका दिया गया।
गांव में कुछ शिक्षक, वकील, पुलिस भी थे।
गांव में कोई कवि था, घटनास्थल पर पहुंचकर उसने करुण रस से ओतप्रोत कविता सुनाकर सबके आंखों में आंसू लाएं, लोगों ने तालियां बजाकर दाद दी।
सभी दलों के नेता वहां जमा हुए, उच्च स्तरीय जांच की मांग किसी दल ने की, सत्ताधारी नेता ने बच्चे के गिरने पर आशंका जताई और कहा कि हो सकता है,इसे हमारे विरोधी दल के किसी कार्यकर्ता ने गिराया हो, उसके साथी भी उससे सहमत हुए।
उस बच्चे के सहपाठी बड़ी संख्या में वहां मौजूद हुए, उसे पुकारने लगे। किसी ने उसे चाकलेट फेंका, कोई उसे चिढ़ाने लगा।
 गांव की कुछ औरतें वहां इकट्ठा हुई, और उसकी मां को कोसने लगी, संभालना नहीं आता तो फिर पैदा क्यों किया?बगल में उसका पति सब सुन रहा था, मगर जवाब दे नहीं पा रहा था। औरतें तरह-तरह की बातें करने लगी।उस बच्चे की मां फूट-फूटकर रो रही थी,और बीच-बीच में कुएं में झांक रहीं थीं।
 सबने घटनास्थल का मुआयना किया और अपनी टिप्पणी करके वहां से दूर हुए।
पुलिस ने उस बच्चे को डंडा दिखाया और धमकाकर ऊपर आने की बात कही।बच्चा तो
और घबरा गया। कोशिश नाकाम देखकर शिक्षक आगे आए,उसे अपना छात्र बतलाने लगे‌।" बच्चे देश का भविष्य हैं।" जताने लगे। " फिर बूढ़े क्या ,देश का भूतकाल है?" किसी बूढ़े ने शिक्षक की बात पर एतराज़ जताया।
  गांव में इकलौता वकील था,कानूनी सलाह अक्सर उसी से ली जाती क्योंकि वह मुफ्त में सलाह देता था। मुफ्त में मिले तो कुछ भी लेना भारतीय संस्कृति है ‌सभी राजनीतिक दलों ने निर्णय किया कि बच्चे
को बचाना राजनीतिक मुद्दा नहीं है इसलिए सब मिलकर उसे बचाएं। फिर भी सबकी अपनी-अपनी शर्तें थी, जिसपर वे अड़े हुए थे।
  अब रात होने को थी इसलिए लालटेन जलाई गई,खाना पहुंचाया गया ।सुबह होने का इंतजार
करने लगें ‌।सभी राजनीतिक दलों वालें उस कुएं पर रातभर पहरा दे रहे थे। कहीं कोई दूसरा दल उसे बच्चे को कुएं से बाहर न लें और राजनीतिक लाभ उठाएं।वह बालक सुबह होने का इंतजार कर रहा  है।
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