शरीर पर ' रोम ' का साम्राज्य है।

                         बाल
                               - ना.रा.खराद

इन्सानी जिस्म पर हर जगह जिसका बसेरा है ,वे हैं बाल! शायद सबसे प्रिय भी! इन्सान की करीब आधी जिंदगी अपने और गैरों के बाल देखने में गुजरते हैं।
बालों को देखना, उन्हें छुना, संवारना,लटके झटके ,तेल वगैरह से चमकाना,मालिस, मोड़ना, उड़ाना जिंदगी बाल
केंद्रित है। इन्सान अपने बालों से जितना प्रेम करता है उतना अपने बालकों से भी नहीं करता।बदन पर बालों का साम्राज्य है।हर तरफ उसका बोलबाला नहीं अपितु बालबाला भी है।
स्त्रियों में तो बाल सबसे प्रिय है,वे उन्हें काटती तक नहीं।
अपने लंबे बालों पर नाज करतीं हैं। अपने सौंदर्य को निखारने में बालों का योगदान मानती है।धूप में बालों
को सुखाती है। बालों को खुला छोड़कर उन्हें लहरातीं है,
अपनी जुल्फें देखकर मन-ही-मन में खुश हो जाती है।
बड़े बड़े ऋषि, दार्शनिक, साहित्यिक, पत्रकार और राजनीतिज्ञ दाढ़ी बढ़ाते हैं, बालों की कितनी महिमा!
गुंडों में भी दाढ़ी मुंछे और सिर पर लंबे बाल का प्रचलन है।बाल काटने का धंधा भी तेजी में है, इससे लाखों लोग अपनी आजीविका चलाते हैं। बालों ने रोजगार निर्माण किया है।
शरीर पर 'रोम' का साम्राज्य है। कोई जगह अछूती नहीं।
सिर से लेकर पैर के अंगूठे तक बालों ने अपना साम्राज्य
फैलाया है।देश के प्रांतों की तरह अलग-अलग नाम पाया है।
सिर के बाल तो सिर चढ़कर बोलते हैं,बाल अवस्था से ही
बाल निकलना शुरू हो जाते हैं। सबसे ऊपर तो बाल है।
चोटी यानि शिखर है इसलिए बड़ा सम्मान पाते हैं।बाल भी कई किस्मों के होते हैं। घुंघराले,घने,पतले, मुलायम, मोटे , छोटे, लंबे,काले,सफेद,लाल वगैरह।
स्री और पुरुष के बीच आकर्षण का कारण भी यह बाल
है। सिनेमा के गीतों में बालों का वर्णन बखुबी रहा है। स्त्रियों ने कभी इस बात का बूरा नहीं माना।बाल जब तक सिर से जूडे हो तब तक बड़े कीमती होते हैं।
भौहों के बाल भी काफी मायने रखते हैं। आंखों की शोभा उन्हीं से है मगर भौंहें अक्सर उपेक्षित रही हैं। आंखों का वर्णन तो पुरजोर होता हैं मगर भौंहें वंचित!
पलकों के तले आंखें सुरक्षित है और सुंदर भी। बनानेवाले ने आवश्यक चीजों का सुंदर भी बनाया है।
आंखें झुकानी हो, शर्माना हो तो पलकें ही मददगार है।
पलकों के बालों से आंखों की सुंदरता है।
बालों को अक्सर संवारा जाता है, कंघी की जाती है,तेल से चमकाया जाता है,बाल जैसे भी हो,जितने भी हो प्रिय
होते हैं। बालों से इन्सान देखने लायक है।
दाढ़ी मूंछों के बाल तो मर्द की पहचान है और इनका न होना औरतों की! कुछ महापुरुष तो दाढ़ी मूंछों से पहचाने जाते हैं और कुछ इससे महापुरुष बनने की कोशिश करते है।
बड़े साहित्यकारों , कवियों, नेताओं, समाजसेवी, साधुओं
की पहचान उनके बालों से हैं।बाल काटने पर बालों में दर्द नहीं होता ,मन में होता हैं। टूटकर वे जूडते नहीं, बड़े स्वाभिमानी होते हैं। बालों और गालों का भी नाता है।किसी सुंदरी के बाल जब गालों पर होते हैं तो वे और सुंदर लगती है।
बाल-साहित्य होता है, वैसे साहित्यकारों के बाल होते हैं।
साहित्य से ज्यादा उनके बाल मशहूर हैं। किसी महनीय
राष्ट्रपति ने अपने बाल काटने से इनकार किया था। पदों
को त्याग सकते हैं मगर बालों को नहीं।कितनी अपरंपार
महिमा है बालों की।
किसी राष्ट्रपति को दाढ़ी रखने की नसीहत एक बच्ची ने दी थी,बालसुझाव!
दाढ़ी मूंछें तो किसी जातिविशेष की पहचान बनी हुई हैं।
मूंछों के आकार भी अपनी प्रतिष्ठा बनाएं हुए हैं। बालों पर हाथ फेरा जाता है, कितना प्रेम!
हवा में जब बाल लहराते हैं तो एक तरह का सुकुन मिलता हैं,किसी गोरी को बार-बार बालों का संवारते
देखना मर्दों की फीतरत में है।
इन्सान के शरीर पर जहां भी , जितने और जैसे बाल है
विधाता ने बहुत सोचकर वे दिए हैं।काटने पर कराहते नहीं। उन्हें साफ और स्वच्छ रखना अपना कर्तव्य है।
                
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