जूतों की महिमा
- ना.रा.खराद
हम सबका अभिन्न अंग है, जूतें,इसकी महिमा अपरम्पार है ।जितने मुंह उतनी बातें की तर्ज पर,'जितने पैर उतने जूते!' कह सकते है।जो होते हैं, सबसे नीचे मगर सरताज। कहते हैं,' आदमी की पहचान उसके जूतों से होती है।" लोग पैर नहीं, जूते देखते हैं।
जूतों की अपनी एक अलग दुनिया है। बड़े शान से शीशे के शोकेस में विराजते हैं। जूतों की देखभाल इन्सान बड़ी शिद्दत से करता है, दर्शन के लिए जूते उतारकर मंदिर में घुसता है, मगर आधा ध्यान जूतों में होता है।पालिश कराके उन्हें चमकाया जाता है।
जूते सभी उम्र के लिए उपलब्ध है। बच्चों के पंपशू से लेकर खड़ाऊं तक।विवाह में भी सालियां जीजा जी के जूते चूराती है।पादूकाओ की पुजा इसकी महिमा है।। कांटे हो या कंकड़,धूप से आपकी रक्षा जूते करते हैं। जहां पैर वहां जूते या जितने पैर उतने जूते। जनसंख्या की गिनती जूतों से की जा सकती है।
कुछ लोग जूते चोर होते हैं, सार्वजनिक ठिकानों पर हाथ साफ कर लेते हैं। अपने पैरों के नाप के हिसाब से जूतों का चुनाव होता है। जिसके जूते चोरी हुए,वह हड़बड़ा जाता है।
औरत को जब पैर की जूती कहा गया तो उसपर बवाल मचा,मगर जूती की महिमा इतनी है कि महिला सम्मान मानेगी।अब तो जूते बाहर उतारे नहीं जाते, बल्कि बड़ी शान से अपने मालिक के साथ कहीं भी प्रवेश पाते हैं।
जवान लड़कियां अपनी जूतियों का दोहरा इस्तेमाल करती हैं, कठिन समय में जूते शस्त्र बन जाते हैं। जूते फेंके भी जाते हैं। जूतों की मरम्मत भी की जाती हैं, उसके मूल अवशेष शेष नहीं रहते।जूते दिखाने के काम भी आते हैं।जूतें बनानें वाले मालामाल हैं, पहननेवाले
खुशहाल! ऊंची एड़ी की जूती कद बढ़ाती है और शान भी।अब तो जूतों की प्रतिष्ठा बढ़ गई है, उन्हें दरवाज़े के अंदर प्रवेश मिल गया है। जूतों की मरम्मत की दूकानों की कमी नहीं होती,हर नुक्कड़ या चौराहे पर मोची अपनी दूकान लगाते हैं,चंद सिक्के मिले काम फतेह।
सबसे नीचे होकर भी सबसे कीमती चीज है जूतें। आदमी बगैर वस्र का रह सकता है, मगर बगैर जूतों का नहीं। इतने महत्वपूर्ण चीज की खोज जिस किसी ने की है,उसका सारी दुनिया ने शुक्रिया अदा करना चाहिए।
बहुत से प्रसिद्ध लोग अपने जूतों से पहचाने जाते हैं।ढेर सारे जूतों में से इन्सान अपने जूते पहचान लेता हैं। जूतों से मारुंगा,यह धमकी भी जूतों की महिमा बताती है।
सैनिकों के जूते बहुत मजबूत होते हैं।कुछ कंपनियों ने अपना नाम जूतों से कमाया है।
कुछ जूतों को घर के अंदर रहने की अनुमति होती है, आजकल की औरतें रसोईघर में, टायलेट में जूते पहनकर जाती है।अब जूते पहने हुए खाना खाया जाता है। जैसे चोली-दामन का साथ, वैसे पैर और जूते का है।