- ना.रा.खराद
प्रेम,इस धरती का सबसे खूबसूरत शब्द, अखिल मानवता इसी के बलबूते है। परिवार,देश या हर समूह की बूनियाद प्रेम है। इन्सान किसी का प्रेम पाता है और किसीको प्रेम देता है। प्रेम का आदान-प्रदान ही जीवन है।
बिना प्रेम का जीवन रुखा है,जीवन में प्रेम से रस पैदा होता है।प्रेम के सिवा जिंदगी मरुस्थल बन जाएगी।
परिजन, मित्र, रिश्तेदार प्रेम से जूड़ते हैं,प्रेम जूटाने का काम करता है। प्रेम पाकर इन्सान
सुकून महसूस करता है।जन्म से मां बाप का प्रेम मिलता है। उसे प्रेम की महिमा धीरे-धीरे समझ में आती है।
इन्सान एक-दूसरे से इसी प्रेम के कारण मिलता है।
जिसे जिंदगी में प्रेम मिलता है, अभावों में भी वह चैन पाता है। सबकुछ पास होकर भी गर प्रेम नहीं मिला तो इन्सान टूट जाता है। मानसिक रूप से विकलांग, उदास हो जाता है।
सबसे प्रेम होना ,यही मानवता है।केवल इन्सान नहीं बल्कि समूचे जीवों के प्रति प्रेम की भावना
इस धरती को स्वर्ग बना सकती है।
प्रेम के रिश्तें का कोई नाम नहीं होता।प्रेम भाव होता है,भाषा नहीं।प्रेम का एहसास बेजूबान को
भी होता है।
प्रेम चाहे वृक्षों से हो, प्रकृति से हो या इन्सानों सेउसकी अपनी गरिमा है।प्रेम देना ही प्रेम पाना है।
जवानी में जिस्मानी जरुरत को प्रेम समझने की भूल की जाती है। शारीरिक आकर्षण को प्रेम कहा जाता है ,
मगर यह आवेग प्रेम नहीं है।प्रेम कभी कम ज्यादा नहीं होता ,वह तो अशारिरिक है।
प्रेम की दृष्टि ,प्रेम का स्पर्श बहुत मायने रखता है। संपर्क में हर इन्सान से प्रेम रखोगे तो पाओगे,प्रेम देकर कैसे पाया जाता है।
ज़बान की कैंची से प्रेम के धागे काटे जाते हैं, अविश्वास के जहर से उसे दूषित कर दिया जाता है,और नफ़रत की आग से उसे भस्म कर दिया जाता है।
प्रेम के अभाव में परिवार विरान हो गए हैं, समाज तड़प रहा है।समूची मानवजाति
छटपटा रही हैं। अस्त्र शस्त्र बनाने की होड़ प्रेम समाप्त करने के लिए है।प्रेम के फूल खिलाने के
बजाय तिरस्कार की फसल लहलहाने लगी है।स्वर्ग जैसी धरती को नफ़रत ने नर्क बना दिया है।
मानवजाति को सिर्फ प्रेम जोड़ सकता है और तमाम भेदभाव इसमें अड़ंगा डाल रहे हैं।
अंहकार को मिटाएं बगैर प्रेम का निर्माण नहीं किया जा सकता। मैं के स्थान पर हम का प्रयोग
जब होगा तब प्रेम का एहसास होगा।
बूढ़ों से, बच्चों से,गरीब से, अमीर से, स्त्रियों से, पुरुषों से हर किसी से प्रेम होना चाहिए।प्रेम देने
की कला है, मांगने की नहीं।
प्रेम से बोलो,प्रेम से रहों और इस धरती को स्वर्ग बना दो।