- ना रा खराद
जिसके हम और जो हमारा हमदीवार होता हैं,उस अच्छे-बुरे अजीबोगरीब शख्स को पड़ोसी कहते हैं,यूं कहे कहना पड़ता है। पड़ोसी देश हो या इन्सान , अनबन लाजिमी है।हमारा पड़ोसी अच्छा होगा तो हम अच्छे पड़ोसी नहीं होंगे।घर में बीबी से और बाहर पड़ोसी से समझौता कर लो तभी जिंदगी हराम नहीं होती।
अपने मकान के चारों तरफ जो हमें घिरे रहते,
वे मुख्य पड़ोसी कहलाते,बाकी दूर के रिश्तेदारों की तरह दूर के पड़ोसी होते हैं।
किसी महापुरुष ने कहा है कि' पड़ोसी के साथ प्यार से रहों।' वह महात्मा जरुर पड़ोसी पीड़ित होगा क्योंकि कितनी व्यावहारिक बात कही है। वैसे प्यार से रहना आसान नहीं होता। फिर भी कोशिश तो की जाती है।
हर देश के पड़ोसी देशों की तरह हर पड़ोसी
हमपर खफा होता है।हरएक पड़ोसी को खुश
रख भी कैसे सकते हैं? जहां घर केअंदर के झगड़े से तंग आ चुके वहां पड़ोसी के मुंह कौन लगना चाहे।अच्छे पड़ोसी नशीब से मिलते हैं।खुद से कम बूरा हो तो उसे अच्छा पड़ोसी कह सकते हैं।वर्ना अच्छा तो कहीं कोई नहीं मिलेगा।धरती पर रहना है तो पड़ोसी तो रहेंगे। मनचाहा, अनचाहा जैसा भी हो पड़ोसी धर्म तो निभाना पड़ेगा। पड़ोसी चाहे बाहर से कितनी भी मिल्लत दिखाएं,भीतर की बात सबको पता होती है। पड़ोसी हमारा असली राजदार होता है। कुछ अनहोनी हो
जाए तो पुलिस उनसे पूछताछ करती हैं इसलिए पड़ोसी होने के नाते सब खबर रखनी पड़ती है। "दीवारों के कान होते हैं।" यूं ही नहीं कहा जाता।
पड़ोसी की नुक्ताचीनी करना मानो हर पड़ोसी
का कर्त्तव्य है। किसी की बूराई सुननी हो,तो
उसके पड़ोसी को एक प्याली चाय पिलाकर ,जितनी चाहे सुन लो। पड़ोसीयों में हर बात में होड़ होती है। कोई नयी चीज घर में आए , पड़ोसी सचेत हो जाते हैं। पड़ोस में रहना है तो बराबरी तो करनी होगी।
कोई पड़ोसी बकवादी तो कोई मितभाषी होता है। दोनों में संतुलन रखनेवाला पड़ोसी ही संतुलित कहलाता है।इधर का उधर न करना , बड़ी अग्निपरीक्षा होती है। विवादों से दूर रहना हो तो इस कान की खबर उस कान न होने दें। ताक-झांक करना किसी पड़ोसी की प्रवृत्ति होती है।' मैं सब जानता हूं।' यह कहने में वह काम आती है।घर आएं मेहमानों को पड़ोसी के बारे में अच्छा सुनाने वाला किसी दिन कोई मिले तो पड़ोसी धर्म का वह अपमान है।
पड़ोसी किस्मों के होते हैं।किस्मत जो मिले उससे मेल-मिलाप रखने की कला आप सध गए तो समझों,आप अच्छे पड़ोसी हो गए।