आजकल जो बहुत सुनने में आता है ,वह वक्तव्य
' बड़े लोग हैं।' सोचा कि इसपर कुछ सोचे। मैंने भी यह वक्तव्य किया भी है और सुना भी। बड़ा
किसे कहा जाता है,कौन कहता है और क्यों कहता है , इसपर चिंतन जरुरी है।क्या सच में कोई बड़ा होता है या केवल भ्रम पाला जाता है या फिर लोग अपने स्वार्थ के लिए किसी को बड़ा मानते हैं इसपर भी सोचने की जरूरत है।
धन, ज्ञान , अधिकार इससे व्यक्ति को बड़ा माना
जाता है,त्याग, समर्पण,सेवा, बलिदान इससे भी
बड़ा माना जाता है।वजह चाहे जो भी हो मगर प्रतिष्ठा प्राप्त व्यक्ति बड़ा माना जाता है। फिर भी हर किसी के लिए हरकोई बड़ा नहीं होता।
व्यक्तिगत तौर पर इसमें भिन्नता होती है। कोई
किसी के लिए बड़ा होता है, कोई किसी के लिए। हरकोई हर किसी के लिए बड़ा नहीं होता।
प्रतिष्ठा की भी एक सीमा होती है, दायरा होता है। ऊंचे ओहदे पर बैठे लोग, नेतागण बड़े माने जाते हैं। धनवानों की अपनी एक प्रतिष्ठा होती है।अपने धन से जो प्रभाव जमाता है, उसके अधीनस्थ लोग उसे प्रतिष्ठा देते हैं, जिससे कुछ मिलता हो उसे प्रतिष्ठा देना व्यक्ति का स्वभाव है। बड़ा भी हर किसी के सामने बड़ा नहीं होता।
ऊंट हिमालय से छोटा होता है।भिखारी तक
भीख के लिए दाता को सम्मान देता है। जिसपर
जो निर्भर है, उसके लिए वह बड़ा है।जो अपना
खेल बिगाड़ बिगाड़ सकता है, उसे भी बड़ा मानना पड़ता है।आय से भी छोटा बड़ा होता है।
जमींदार को गांव में बड़ा कहते हैं। बड़ा अधिकारी, बड़े साहब वगैरह हम सुनते हैं।
हर क्षेत्र में बड़े लोग होते हैं। बड़ा बनने की कोशिश भी की जाती है। अपनी लोकप्रियता बढ़ाकर ,धन बढ़ाकर परिचितों में प्रतिष्ठा हासिल की जाती है। बड़ेपन का एक मकाम होता है।
कुछ अनुठा,अदभूत करके भी बड़प्पन प्राप्त
किया जाता है। कलाकारों ने अपने कला के बूते
प्रतिष्ठा हासिल कर ली है। जैसे छोटा पौधा एक
दिन विशाल वृक्ष बनता है, वैसे हर बड़ा व्यक्ति
कभी छोटा भी था।
संत, महात्मा,चिंतक, दार्शनिक,कवि, साहित्यकार अपनी योग्यता से बड़े माने जाते हैं।
हर किसी के बड़प्पन से हर कोई वाकिफ नहीं होता, उसके लिए वह बड़ा नहीं होता। खुद को
हरकोई बड़ा समझता है।अपने से निम्न लोगों
के बीच रहकर इस बात की तस्सली कर लेता है।
विभिन्न क्षेत्रों में बड़े लोग हैं।जिसका काम बड़ा
उसका नाम बड़ा।कभी तो नाम बड़ा और दर्शन
खोटे। जैसे दो से तीन बड़े हैं, वैसे तीन से चार भी। बड़े छोटे का सिलसिला कभी थमता नहीं।