शादी का लड्डू

             शादी का लड्डू
                              ‌-ना.रा.खराद
 भारत में दो चीज़ें वक्त पर होती है,एक उसका वोट और दूसरी शादी।इस देश में शादीयां पौराणिक काल से होती आयी हैं।भारत में शादी पंडित तय करते हैं।पंचांग नामक पुस्तक में वे पूरा लेखा-जोखा देखते हैं।लड़का लड़की के गुणों के मेल से शादीयां संपन्न होती है।मेल बिठानेवाले पंडित अपनी फीस वसुलते है,और कन्नी काट लेते हैं।
मुझे उन पंडितों की तलाश है, जिन्होंने असफल शादीयां रची अथवा उस पंचांग की जिसमें यह लिखा है।गुण तो क्या दुर्गूण तक मिलते नहीं दिखते।शादी के इस बेमेल जोड़ को जोड़ा किसने कहा इसका भी कोई अतापता नहीं।
  शादीयां इसलिए होती हैं कि हर कोई करना चाहता है। जरुरत के समय में जरुरत की चीज मिले तो भला कौन
इनकार करें? शादी रिवाज के तहत भी कराई जाती है। कोई शादी न करें तो लोग तरह-तरह की बातें करतें हैं।
शादीशुदा लोग इसे बड़ा झंझट मानते हैं।शादी की माला
उन्हें फांसी का फंदा लगता हैं।
  शादी तो बड़ी खुशी से होती है, जैसे खुशी का आखिरी
दिन हो। शादीशुदाओं को अविवाहितों का सुख देखा नहीं जाता इसलिए ब्याह रचाने में सहयोग देते हैं। शादी से हरकोई पछताता है,वजह जो भी रहती हो,सबको लगता है , उसने धोखा खाया । सच्चाई तो यही है शादी ही धोखा है जो किसी और का दिया नहीं बल्कि खुद चुना हुआ होता है। 
  शादी गलतियों की विरासत है जो सदा निभायी जाएगी।शादी का दुख सभी भुगतते हैं पर किसी से कहते नहीं क्योंकि सुननेवाला पहले से दुखी हैं।
शादी एक गहरा शोषण है। एक-दूसरे पर हावी होने
का,झूकाने का जरिया है जो कभी हिंसक तो कभी अहिंसा से निभाया जाता है।
लड़का लड़कीयों को इन गुणों से तो कोई वास्ता नहीं होता।गुण गए भाड़ में,यह धारणा होती हैं।जवानी भूखे शेर की तरह होती है,सामने शिकार दिखे झपट पड़े।शादी की कलई तो तब खुलती हैं जब हल्दी का पीला रंग फीका पड़ने लगता है और बीबी अपना असली रंग दिखाना शुरू कर देती है।
  बाबूल दुआएं देकर विदा कर देते हैं मगर शौहर तो उम्रकैद पाता है।न भाग सकते हैं ना भगा सकते हैं।घर की बेइज्जती घर में रहे,इस मुहावरे को निभाते हैं। बेमेल के साथ मेल बिठाने में उम्र कट जाती है उसपर तुर्रा यह कि,'सात जन्मों का बंधन।' इससे तो रूह कांप जाती है। कहते हैं , शादीयां स्वर्ग में तय होती है।' अब भगवान भी कमजोर छात्रों की तरह गलत जोड़ियां मिलाने लगे हैं।मुझे आजतक एक भी ऐसा जोड़ा नहीं मिला जो अपनी शादी से संतुष्ट हो।शादी के पच्चीस साल बाद भी वे पछताते नजर आते हैं।उसकी वजह शादी नहीं बल्कि बेमेल शादी है। जिसेकहां तो जोड़ा जाता है मगर होता है बेजोड़।
असंगति से भरे दो व्यक्ति संगति में रहे तो दुख सिवा क्या मिलेगा? मराठी में,"अरे संसार संसार...." उसी पंचांग का नतीजा है।
शादी वास्तविक गुणों से तय हो।शिक्षा,योग्यता, भावना, इच्छाएं, चरित्र,वित्त तब वे सफल होगी।
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