नापसंद

                   नापसंद
                                   - ना.रा.खराद
वह आइने के सामने खड़ी थी।अपनी कुरुपता पर वह शर्मिंदा थी।अब तक पच्चीस लड़के उसे नापसंद कर चूके थे।उसे यह पूरा भरोसा था कि इस बार भी दाल गलनेवाली न थी,मगर भीतर किसी कोने में आस भी थी।वह अपने आपको समझाती कि," मैं ज्यादा कुरुप तो नहीं हूं, थोडा़ रंग सांवला है,कद थोडा़सा छोटा है ,नाक जरासी चपटी , मुझसे कुरुप लड़कीयों को पसंद किया गया तो क्या कोई लड़का मुझे पसंद नहीं करेगा?" 
हरबार की तरह उसने श्रृंगार किया।चेहरे पर
झूठी मुस्कान लिए वह लड़के के सामने जा बैठी, लड़का उसे गौर से देखने लगा तो वह सिहर गई।वह पढ़ाई में बहुत तेज थी।नाम भी तेजस्वीनी ,मगर कुरुपता ने सारा खेल बिगाड़ दिया था। कुरुप लड़के भी उसे नापसंद करते थे।इससे उसकी बाकी काबिलियत पर पानी
फेरा जा रहा था। लड़केवाले यह कहकर जाते की," कल परसों खबर कर देंगे।" 
जब कोई खबर नहीं आती तो वे समझ जाते
कि,"लड़की पसंद नहीं।" तेजस्विनी भीतर से
टूट रही थी।सोचती ,"भगवान हम जैसी कुरुप
लड़कियां बनाता क्यों है?" मां बाप चिंतित थे।जब कोई उपाय नहीं होता तो चिंता बढ़ जाती है।वह अकेली में रोती।अपने मां बाप को समझाती ,"बाबूजी चिंता न करें, मैं कुंवारी रह जाऊंगी,सदा आपके साथ रहूंगी।" 
बाबूजी सुनकर दुखी हो जाते। कोई भी बाप
अपनी बेटी को कुंवारी नहीं रख सकता।सोचता ,"दुनिया बहुत बड़ी है,मेरी बेटी को कोई तो पसंद करेगा।"
लड़के देखने आते , कोई जवाब नहीं आता।
शादी में सौंदर्य कितना मायने रखता है,इसका
उन्हें अनुभव हुआ।
तेजस्विनी बहुत काबिल लड़की थी। अंग्रेजी
में एम ए किया था उसने।पढ़ने का शौक था।
मन से भी सुंदर थी मगर एकही बात की कमी
थी वह है सौंदर्य। सौंदर्य वह कहां से लाएं?
अपनी सहेलीयों की शादी में जाने से भी वो 
कतराती। कुछ उसका मजाक उड़ाती।उसकी
उम्र अब तीस को पार कर चूकी थी।जवानी में
भी निराशा की वजह से तेजहीन हो गई थी।
"नापसंद" इस शब्द से जैसे उसे नफरत हो गई
थी।कितनी सहजता से कहा जाता है,"हमें
लड़की पसंद नहीं।" जैसे कोई वस्तू हो।
कुरुप लड़के जब पैसेंवाले रहते तो उन्हें सुंदर
लड़कियां पसंद करती हैं, फिर कुरुप लड़कियां क्यों पसंद नहीं की जाती?" उसका सवाल लाजिमी था,मगर उसका जवाब करता दे कि"दुनिया के बाजार में वही बिकता है, जिसके खरीदार है।" अब उसने शादी न करने
की ठान ली। " कुंवारा रहना गुनाह तो नहीं!"
एक दिन अचानक एक चिट्ठी आती,लिखा था," मुझे लड़की पसंद है।" दहेज में कुछ नहीं
चाहिए।' सादे ढंग से शादी का प्रस्ताव रखे।
तेजस्विनी के माता-पिता तो खिल उठे।" बेटी
का भाग्य खुला है, चलकर रिश्ता आया।"
उन्होंने बेटी से इस बारे में बात की।इसी लड़के ने पांच साल पहले उसे देखा था। इसलिए वह भी राजी हुई।तय तारीख को शादी हुई।वह ससुराल गई तो दीवार पर टंगी हुई तस्वीर देखी। फोटो से वह पति की मां
नहीं लग रही थी।वह तस्वीर देखही रही थी तो एक दो साल का लड़का उसके पास आकर मां मां रटने लगा। तेजस्विनी बेहोश सी हुई। बिना पुछे सब समझ गई। उसके पति ने उसे सारी हकीकत बतायी। तेजस्विनी समझ गई कि लाचारी और बेबसी इन्सान को कहां
ले आती है। जैसे उनका कोई वजूदही नहीं
होता।उसने मां बाप से सदा यह बात छिपाएं
रखी कि,"एक शादीशुदा मगर विधूर से मेरी
शादी हुई है।" पहले वह मायके में रोती थी,अब ससुराल में रोती है।
सच में कुछ नारियां ,अभागन होती है।
              
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