प्राकृतिक आपदाएं
जिंदगी हादसों से भरीं है, यहां आएं दिन कोई न कोई हादसा होता रहता है,जिसकी चपेट में मानवजाति या अन्य जीव आतें रहते हैं। प्राकृतिक हादसे और मानवकृत हादसे होते हैं। प्रकृति अपने प्रवृत्ति से चलतीं है,जब चाहे तब अपना नया रंग दिखातीं है,उसकी हरकतें गुप्त रहतीं हैं, एकाएक हरकत में आकर सबको चौका देती है और बेचारा मनुष्य उसकी चपेट में आकर अपने प्राण गंवा देता है।
प्रकृति दसों दिशाओं से संकट लातीं है,न जाने उसका कहर कब टूट पड़े और कब वह सबको आगोश में ले। प्रकृति की प्रवृत्ति समझ के परें है,वह नये नये रुपों में अपने जौहर दिखातीं है, प्रकृति से कोई वाकिफ नहीं हैं,वह हरबार नये हथकंडे अपनातीं है।
प्रकृति जिस तरह से खेल बनातीं है, बिगाड़ती भी है।उसका कहर जब टूट्ता है,तो उसे कोई नहीं रोक सकता।पलभर का तुफान तबाही लाता है। बड़े बड़े वृक्ष उखड़ जाते हैं, इमारतें धराशयी हों जातें हैं।
भूकंप ने आजतक दुनिया में कई बार तबाही लाई है, मनुष्य द्वारा निर्मित संसाधनों को नेस्तनाबूद किया है। जान-माल का नुक़सान किया है।जिस धरती पर बसे थे,उसी ने निगल लिया है।तबाही का मंजर भी बड़ा खौफनाक होता है। बच्चे, औरतें, बूढ़ा किसी को बख्शा नहीं जाता, प्रकृति कोई दया नहीं दिखातीं।
प्राकृतिक आपदाओं से मानवीय जीवन घिरा है,मानव सहमा सहमा जीता है, उसे हरपल प्रकृति के मूड़ को समझना होता है,न जाने कब वो क्रुद्ध हो जाएं और चपेट में ले।
प्रकृति पर जो मानवीय आक्रमण हुआ हैं, इससे वह ख़फ़ा है, इसलिए वह आपदाएं लातीं है ताकि मानव सबक लें। मानव ने अपनी जाति को सर्वश्रेष्ठ घोषित किया है, प्रकृति को मात देने की बात जब से वह करने लगा है,तब से उसका संतुलन बिगड़ गया है।
मानव आज प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा है, क्योंकि उसने प्रकृति से दुश्मनी मोल ली है। प्रकृति मानव की मित्र हैं, मगर मानव उसका नाजायज फायदा उठाया है,उसकी विनम्रता को उसकी कमजोरी समझने की भूल की है।
भूकंप, बाढ़, तुफान,अकाल,सूनामी विभिन्न मार्गों से प्रकृति कहर ढातीं है।इस कहर से,इन आपदाओं से बचना हो तो प्रकृति से दोस्ती का हाथ मिलाना होगा, उसके संग चलना होगा,उसको समझना होगा, संभलना होगा।
ना.रा.खराद
मत्स्योदरी विद्यालय
अंबड