- ना.रा.खराद,अंबड
जिंदगी एक अनमोल सौगात है।हर किसी को स्वतंत्रता से जीने का हक है, मगर हजारों नियम और बंधनों से मुक्त नहीं हो सकता इसलिए इन्सान छटपटा रहा है। रस्मों रिवाज तथा रिश्ते नातों ने उसे दबोच रखा है।बच्चा बच्चों के साथ जी भरकर खेलना चाहता है,खेल नहीं पा रहा है, क्योंकि उसकी मां उसको जबरन घर ले जातीं हैं और जबरन उसे खिलातीं है।इसी जबरन का नतीजा है कि आगे बच्चे मां की कोई बात नहीं मानते।जब बच्चा कमजोर था तब मां छलतीं थी और अब मां कमजोर हो गई तो बच्चा छल रहा है।
सच तो यहीं है कि हर कोई अपनी तरह की जिंदगी जीना चाहता है और कोई और उसे वैसा जीने नहीं देता,इसी द्वंद के बीच वह मुक्त होने के रास्ते खोज लेता है,कभी चालकी तो कभी बहानों से अपने मनसूबे या मंशा वह पूरी कर लेता है। यहां हर जगह निगेहबान है, हरकोई हर किसी पर नजर रखे है कि कोई मनमानी तो नहीं कर रहा है। तमाम संस्कार भी एक बंधन है,सारी व्यवस्थाएं मानव जीवन को अव्यवस्थित कर देती है।न तो वह मुक्त संचार कर पाता है,न ही कहीं चैन से रह पाता है।इस प्रकृति की हर चीज पर किसी का कब्जा है, कितने मालिक है इसके!
हर जीव एक स्वतंत्र अंश है, उसकी अपनी सोच है, जीने का अंदाज है, मगर वह वैसा जी नहीं पाता।एक बना बनाया ढ़ांचा है, जिसमें वह ढल जाता है,वह जिता नहीं, बल्कि उसे जिलाया जाता है व्यवस्था द्वारा! तमाम तरह के बंधनों में कैद यह कैदी ताउम्र काटता है और किसी दिन मुक्त हो जाता है,इस संसार जाल से।
जिंदगी एक धोखा है, नर्क में सड़ना है,इस पृथ्वी से बड़ा कोई नर्क नहीं हो सकता। यहां जितना दुख है, उतना कहीं नहीं हो सकता। यहां दो आदमी दो घंटे एक विचार से रह नहीं पाते, आदमी आदमी का दुश्मन है।देश के भीतर और बाहर दोनों तरफ संघर्ष है।हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का मालिक बनना चाहता है, दबाना हर किसी की फीतरत में है।
कभी हिंसा से तो कभी प्यार की आड़ में शोषण चलता है। तरीके अलग हो मगर मकसद एक! जिंदगी की इसी जद्दोजहद में इन्सान दम तोड रहा है, उसकी सांसें फूली हुई है, धड़कने तेज है, क्योंकि उसका कोई खून चूस रहा है।शिकारी घात लगाए बैठे हैं,कभी भी जान जा सकती हैं। वे शिकारी जिन्हें उसे अपना माना है मगर उसे पता नहीं कि
पालें हुए बकरे को एक दिन काटा जाता है। यहां किसी को अपना समझना सबसे बड़ी भूल है क्योंकि वह भी अपनों की खोज में हैं मगर पाता है कि कोई अपना नहीं हैं।बस, शोषण का एक जरिया है।
जिंदगी, जिसकी उसकी अपनी है, उसपर किसी और का हक या अधिकार नहीं होना चाहिए। भलाई के नाम पर
जो कुछ किया जाता है, उसका कोई मोल नहीं है। मुंह मोड़ना, पलटना इसी का नतीजा है।हम जो कुछ मानकर चलते हैं, दरसअल धोखा वहीं है। यहां कोई मान्यता मायने नहीं रखती। यहां विश्वास टिकता नहीं। अपने अपने गिरोह है, किसी डाकू की गिरोह की तरह ये सामूहिक हमला करतें हैं। ताक़त बढ़ाने के लिए अपनाएं हथकंडे है जाती, धर्म और देश भी!जो लड़ते हैं अक्सर वर्चस्व की लड़ाई और हिंसा की जीत होती है।जीत जब मायने रखती है तो मार्ग की साधनशुचिता कोई मायने नहीं रखती।
यहां हर रिश्ते में अनबन हैं, क्योंकि रिश्ते छल-कपट का दूसरा नाम है। रिश्तों की आड़ में पनप रहीं कुटिलता और दांव-पेंच दमघोंटू है। रिश्तों की उधेड़बुन में मुक्ति का रास्ता ढूंढता इन्सान कभी मुक्त नहीं हो पाया है। मृत्यु यातना भुगत रहा है फिर भी जिएं जा रहा है, क्योंकि थोड़ी-सी जिंदगी जो बचीं है, खुद के तरीके से जीने की कोशिश कर रहा है।