जूतें और हम

                 जूतें और हम
                                 - ना.रा.खराद

     जूते इन्सान के शरीर का अभिन्न अंग बने हैं।आदमी पैरों के बगैर जी सकेगा ,मगर जूतों के बगैर नहीं।जैसे चोली दामन का साथ,वैसे कदम और जूतों का।मुहावरों में उसे भले, पैर की जूती कहकर कम आंका है मगर असलियत कुछ और है।
 जन्म के कुछ माह बाद ही जूतें हमारे साथ होते है।नन्हें से पैरों में पंपशू ।जूतों में हर किसी की जान होती है।जूतें इन्सान की पहचान होती है।जब कोई किसीको देखता है तो पहले पैर के जूतें देखता हैं।पैरों का मोल एकसा मगर जूतों का अलग। राम बनवास गये तो भरत ने राम के खडाऊं की पूजा की,पादूकाओं की पुजा तो बहुत जगह देखी हैं।मंदिर में जाने से पहले जूतें हारवाले के पास सुरक्षित रखे जाते है।हार तो बहाना है।मंदिरों में भी नजर जूतों पर होती है। पत्नी के खोने पर आदमी इतना परेशान नहीं होता ,जितना जूतों के खोनेपर होता है।
 शादी में जोडा़ और उनका जोडा़ अहम है।इसलिए सालियां जोडा़ छिपाती है।पति पत्नी तलाक ले सकते है, मगर जुतों की जोडी़ सदा सलामत रहती है।पलभर भी जूदा नहीं।कदम से कदम मिलाकर।एक का अंत हुआ तो दूसरा भी जान निछावर करता है।
 जूतें केवल पैरों के रखवाले नहीं अपितु पैरों की शान भी हैं।उसके अन्य उपयोग भी कम महत्त्व के नहीं।उसका शस्त्र की तरह उपयोग है।औरतें,लडकियां ,जूतों से मारुंगी कहती है।जूतें हर आकार के होते है,यूं कहे जितने पैर उतने जुतें।जूतें हर कोई पहनता है।जनसंख्या की गिनती जूतें गिनकर भी की जा सकती हैं।
कांटे कंकड़ों से वे हमें बचाते हैं,पहले दहलीज तक पहुंचनेवाले जूतें अब खाने की मेज तक पहुंच गये हैं।
 कहते हैं, जूतों से इन्सान की पहचान होती हैं।बिना पैर के इन्सान पर लोग हंसते नहीं मगर बिना जूतों का हो तो अवश्य हंसते हैं। बिकने से पहले जूतें बहुत आराम पाते हैं,शिशे में से ग्राहक को निहारते हैं। जोड़ा भी जोड़ीदार तलाशता है। 
जूतों के निर्माता को भले कम आंका गया हो,मगर जूतें तो सम्मान पाते हैं।
 कुछ ऐतिहासिक नामचीन हस्तियों के जूतें तो म्यूजियम में रखें जातें हैं। कुछ पुजनीय महात्माओं के जूतें पुजे जाते हैं। जूतें बहुत सहनशील होते हैं,धरती की धूप से बचाते हैं, कांटों को रौंद देते हैं।नीचे दबे रहकर व्यक्ति का बोझ संभालनेवाले जूतें त्यागी व्यक्ति की तरह उपेक्षित रहते हैं।
  हजारों जोड़ों में से अपना जोड़ा आसानी से पहचान लिया जाता है। कभी-कभी सार्वजनिक स्थानों से जूतों का अपहरण भी होता हैं मगर चोरों ने रास नहीं आते।अनजाने में जोड़ा जूदा भी होता हैं,यह विरह वेदना उन्हें तड़पाती है।वे फिर से मिलन चाहते हैं। जूतों की कीमत भले भिन्न हो मगर मोल एक सा होता है।
  पुराने जूतें मरम्मत से ठीक किए जाते है।किसी के जिंदगी का साथ निभातें है।बस उसके मूल अवशेष नष्ट हो जाते है।सिपाहीयों के जूतें मजबूत होते है।दूल्हन के नाजूक। कुछ सभाओं में वक्ता को जूतें फेंककर मारें जाते है।जूतें खाए जातें है।जूतें बडे़ अनमोल होते है।चीजों का उपयोग ही  उसका मोल हैं बाकी कौडी़मौल हैं।
  
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