नाकाम आत्महत्या

एक नाकाम आत्महत्या!
                                         - ना.रा.खराद

आएं दिन हत्याएं और आत्महत्याएं होती रहती हैं,हत्यारे कारावास में और आत्महत्यारें स्वर्गवास में सिधारते हैं।हम इन्सान जहां जिस धरती पर रहते हैं,उस लोक को मृत्युलोक कहा जाता है और मृत्यु के बाद जहां जाते हैं , उसे स्वर्गलोक! 
पौराणिक ग्रंथों में लिखा है कि," आत्मा अमर है।" अन्य लोगों की तरह मैं भी इस उद्धरण को
सच मानने लगा हूं,और उस दिन का इंतजार कर
रहा हूं कि अनुभव से जान लूंगा,तभी दम लूंगा,मगर दम लिए बिना अनुभव असंभव !
तो सोचा कि ," क्यों न, आत्महत्या की जाएं।"
लेकिन कानून तो आत्महत्या को अपराध मानता
हैं, कहीं इस जूर्म में फांसी हुई तो? यह भी डर था।
आत्महत्या अगर कामयाब हो गई तो बच गए, वर्ना जेल में सड़ना पड़ेगा। वैसे भी आत्मा मरती
नहीं, फिर उसकी हत्या कैसे करें? शरीर में आत्मा किस जगह होती है,इसका भी किसीको
पता नहीं,न वैज्ञानिक बता रहे हैं।
मैंने आत्महत्या का विचार अपने मित्रों के सामने
रखा,तो मुझे कायर कहा,कहा कि," आत्महत्याएं कायर करते हैं।" मैंने उसपर कहा कि," जो कायर होते हैं,वे आत्महत्या का साहस
नहीं कर सकते!" 
जब मैंने अपने परिजनों से इस बारे में बात की तो वे आगबबूला हो गए,बोले," मरना कोई बच्चों
का खेल नहीं।" हमें देखो मरने के डर से सालों से जिए जा रहें हैं।"
इस बारे में जब रिश्तेदारों को भनक लगी तो , मिलने वालों का तांता लग गया। हरकोई आंसू बहाने लगा और ऐसा कदम न उठाने की हिदायत देने लगा, लेकिन मैं अपने फैसले पर
अटल था।
आत्महत्या कहां और किस अंदाज में करें,और
क्षणों में प्राणपखेरु उड़े,इसपर मैं चिंतन कर रहा
था। बहुत से तरीके खंगालें, आखिरकार कुएं में छलांग लगाना तय हुआ। गांव में और गांव के आसपास कुएं बहुत थे, पूराने,नये, छोटे बड़े तरह-तरह के कुओं की भरमार थी। कुछ पानी से लबालब तो कुछ सुखे ।अब चुनाव करना था, इसलिए मुआयना करना जरुरी था। गांव के बिचोंबिच एक बड़ा कुआं था,वह सार्वजनिक था, इसलिए बहुतों ने उसी में कुदकर जान दी है,मगर किसी की जान गई नहीं है, क्योंकि उसी
कुएं के पास जुआरी डेरा जमाए रहते हैं।भनक लगते ही बचा लेते हैं। आजतक उस कुएं में एक भी आत्महत्या कामयाब नहीं हुई। उसे नाकाम
कुआं भी कहा जाता है।
गांव के बगल में ही एक किसान के खेत में कुआं था, लेकिन वह किसान अक्सर वहीं मौजूद रहता था।उसके खेत में उसकी इजाजत के बगैर
परींदे भी पर नहीं मार सकते थे,तो मेरी क्या मजाल! 
एक छोटा कुआं था,मगर उसमें सिर्फ घुटनों तक पानी था, छ्लांग से टांग टूट जाती ,जान नहीं जाती,मकसद पूरा नहीं होता।
गांव तमाम कुओं का मुआयना करने के बाद 
मैं निराश हुआ और इसी निराशा में आत्महत्या
न करने का फैसला किया और मैं घर लौट आया।
गलत काम में नाकाम होना भी कामयाबी है।
                       
Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.