- ना.रा.खराद
हम नकली युग में जी रहे हैं,इस युग की हर चीज नकली हैं।हर आदमी नकली हैं।असली युग की नकल का यह युग है।यह युग सिर्फ उस युग कीप्रतिछाया हैं।आदमी स्वयं इस बात से वाकिफ है कि वह नकल में जी रहा है,भीतर का असली आदमी तो छटपटा रहा है।नकली उसपर हावी हैं।
नकल की इतनी आदत हुई है कि असलियत
में जीना नामुमकिन -सा है।
जन्म से ही नकली युग शुरू होता है।पहले प्राकृतिक जन्म प्रक्रिया होती थी।अब सिझर से बच्चे निकलवा लेते हैं। मां की गोद में नहीं बल्कि नौकरानी की गोद में बच्चें पल रहे हैं। मां का दूध भी मिलना मुश्किल हो रहा है।नकली दूध पर पले बढ़े बच्चे ,आजन्म नकली का अनुसरण करते हैं।
इम्तहान में नकल तो जैसे पैदाइशी हक हो गया है। जबकि पांचवीं छठी पढ़ना भी गौरव की बात थी,अब एम ए पास दूसरों से अखबार पढ़वा लेता है और यह कहते नहीं थकता , मैं एम ए हूं।
नकली की रफ्तार इतनी अधिक है कि असली पहलेचीजों पर कब्जा कर लेता है, यूं कहें की असली और नकली हमजोली हैं।दोनों में इतनी समानता कि अंतर पहचानना मुश्किल। विशेष यह कि जो असली बना रहा है वहीं उसी समय नकली बना रहा है। बाजार का यह ऊसुल है कि नकली बेचना हो तोअसली का दिखावा करना पड़ता हैं।जबकि समुची मानवजाति नकली हैं,असली चीजें उन्हें हजम नहीं होती।जैसा कि तवायफ से ज्यादा उसके भड़वे भाव खाते हैं वैसे नकली की तूती बोलती हैं।
किसी भी सरकारी विभाग की छानबीन करों तो
आधे से अधिक ने नकली कागजातों से नौकरियां
पायी हैं।देश में कभी असली नेता थे।सरल थे।
फिर नकली युग आया, हु-ब-हू उनके भेष में भेड़िए
राजनेता बने।उनकी हंसी, उनके विकास के दावे और उनकी धर्मनिरपेक्षता सबकुछ केवल पहले
नेताओं की नकल है।
हर क्षेत्र में नकल का बोलबाला है।शिक्षा, संगीत
उससे अछूता नहीं है।पूराने संगीतकारों ने बड़े प्रयासों से जो धुनें बनाई है,उसीकी नकल से काम
चलाया जा रहा है। नाटक,सिनेमा इतने प्रचलित
है कि असली समयबाह्य हो गया है। अभिनेता
पूजे जाने लगें हैं। औपचारिकता और शिष्टाचार इस
युग की पहचान है।ना किसी की हंसी असली है ना
किसी के आंसू।
सोना,नोट,बाल,दांत और न जाने क्या क्या नकली?
इस नकली युग में असली प्रेम दुश्वार हो गया है।
जबकि जिसे मिलता नहीं वह देगा क्यों? प्रेम की
नकल से ही अब प्रेम पाया जा सकता है।नकल
जब दोनों तरफ से हो तो रंग लाती है।
जिस्म के सभी अंग बाजार में मिलते हैं सिवा आत्मा
के ।इस युग के पास आत्मा नहीं।नकली आदमी तो
नकली आदमी ने बना दिए हैं।नकली पूतलों से मानवी प्रेम इस बात का गवाह है कि मोल किसका
है। नकली सस्ता है इसलिए उसकी मांग ज्यादा है,
नकली को नकली जल्दी खिंचता भी है।
इस युग में जन्में हम बड़े भाग्यशाली हैं कि हमें
कुछ भी असली नहीं करना पड़ता।बस, नकली
को बेचने की कला आनी चाहिए।