मैं और मेरी दाढ़ी

            मैं और मेरी दाढ़ी।


   जब से दाढ़ी के बाल उग आए हैं,तब से मुझे हरकोई यही सवाल करता है कि," आप दाढ़ी क्यों रखते हैं?" और मैंने इस सवाल का जवाब हर बार नया दिया है, ।क्योंकि सवाल का रुख देखकर जवाब देना होता है।
जवाब से सवालकर्ता का समाधान भी होना चाहिए। वर्ना उप सवाल किए जाते हैं।सवाल,न थमनेवाले होते हैं।       दाढ़ी के बारे में सवाल करनेवालों में हर वर्ग के लोग होते हैं। बच्चे, बूढ़े स्री, यहां तक'वो' भी। दाढ़ीधारी तक दाढ़ी के बारे में पूछते हैं।
किसीने ताना मारा था,"दाढ़ी रखना एक तरह का फैशन है।" मैंने कहा था," फिर तो नाक रखना,पैर रखना,कान रखना भी फैशन हैं।"
मैंने फिर कहा," दाढ़ी रखना फैशन नहीं, दाढ़ी
निकालना फैशन है।"
    एक परिचित महिला ने यही सवाल किया कि,"आप दाढ़ी क्यों रखते है?" मैंने तपाक से जवाब न देकर सवाल किया क्योंकि जवाब न होने पर उससे बचने का यही एक उपाय होता है।कहा,"आप दाढ़ी क्यों नहीं रखती?" उसने मुझे मूर्ख समझते हुए कहा," स्त्रियों की भी कहीं दाढ़ी होती हैं?" मैंने कहा ,"मगर पुरुषों की हर कहीं होती है।" औंधे मुंह गिरी तो अभी तक!
जिन पुरुषों को अपनी दाढ़ी पर एतराज़ है,वे बेचारे उसे सफाचट कर देते हैं। मूंछों पर भी हाथ के बजाय उस्तरा चलाते हैं
  हर किसी की दाढ़ी में भले ही बाल हो मगर दाढ़ी
का अपना एक चरित्र होता हैं।जिसकी ठुड्ढी में वे
निकल आयी उसका व्यक्तित्व उसमें पनपता है।
बड़े-बड़े सूरमाओं की दाढ़ी होती है।साधूओं की
तो पहचान बनी हुई हैं। गुंडों को तो उसकी जरूरत है। दार्शनिक तो उसीसे पहचाने जाते हैं।
  डाकूओं का सरगना तो दाढ़ी मूंछों से ही डराता हैं।कवि, साहित्यकारों ने दाढ़ी को प्रतिष्ठा प्रदान की। कुछ नेताओं ने उसे राजनीति में भी चमकाया।
दाढ़ी छोटी हो या बड़ी,काली हो या सफेद उसकी प्रतिष्ठा है।
       

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