कार और बेकार, मैंने कार खरीदी,

कार और बेका

मैंने कार खरीदी, परिचितों में जब यह खबर पहुंची तो स्वागत, शुभकामनाओं के साथ," भगवान आपको सुरक्षित रखें।" की तर्ज पर संदेश भी आने लगे।सभी लोगों की तरह कार खरीदना मेरा एक सपना था। वैसे सपने में मैंने कई बार कार खरीदी थी।आज हकीकत में कार दरवाज़ें पर खड़ी थी।नयी चमचमाती कार देखने आस-पड़ोस के लोगआने लगे।
बच्चों का कौतूहल जागने लगा,कोई बच्चा आईना घुमाकर उसमें अपनी सुरत देखता तो कोई शीशें से अंदर झांकता।अगल बगल के सभी घरों में खबर पहुंची थी।बच्चों ने दौड़कर ये काम कर दिया था।
कुछ घरों में पत्नीयां पति को ताने मारने लगी।,"देखो,हमसे कम वेतन है मगर ठाठ देखों ,और एक तुम हो....!" इस 'तुम हो' में क्या है ,इसे अनुभवी पति अच्छी तरह से जानता है।
मैं कार लेकर जब घर पहुंचा तो पत्नी स्वागत और पुजा का थाल लिए खड़ी थी।कार के बहाने क्यों न हो ,आज मैं भी पुजनीय हुआ था।मेरे माथे पर तिलक लगाया गया। जैसे मैं जंग में फतेह होकर लौटा था।सास ससुर की आनंद की सीमा न थी।सास बोली,"मैंने कहा था लड़का होनहार है।"मगर बीबी मन में कह रही होगी
"कैसे उल्लू बनाया !"
एक बुजुर्ग पड़ोसी गला खंखारकर बोले," जरा आराम से चलाया करो वर्ना..! " उनकी इस अशुभ चेतावनी से मैं सहम गया।रिश्ते में चचेरा भाई आया ,उसने कार की तारीफ की और मेरी निंदा !कहा,"पहले से तुम तंगहाल हो और उसपर यह बला।" सब हंसे।मुझे लगा यह बला कहां से आयी?
मेरे दफ्तर के एक सहकर्मी आए,आते ही सवाल,"किस बैंक का लोन लिया?" मैंने झट से जवाब देकर छुटकारा पाना चाहा मगर उन्होंने बिना रुके दूसरा ,तीसरा और चौथा प्रश्न किया। ऐसे लगा जैसे भोजन से पहले वेटर बील लेकर आया हो।वे उत्तर की प्रतिक्षा कर रहे थे। मैं टाल रहा था।
उसी बीच एक और पड़ोसी देर से पहुंचे।कहने लगे,"कार खरीदना आसान है,उसका इस्तेमाल नहीं।" मुझसे ज्यादा वे चिंता में दिख रहें थे।हर बात की चिंता करना उनका स्वभाव था।
किसी ने कोई भी चीज खरीदी कि ये महाशय उनके घर पहुंचकर उस चीज की खराबियां गिनाते।
गली में पहले से कुछ कारधारी थे।एक जैसे ही आया ,कार की चाबी मांगी और कार ले गया वापस आकर कहने लगा," कार तो अच्छी है मगर दूसरी लेनी थी,पांच साल बाद इसकी गारंटी नहीं।" अपना तजुर्बा वह बयां कर था।
किसी ने कहा,"पुरानी लेते तो फायदे में रहते।" उसी व्यक्तिने परसों ही पुरानी कार लेने पर किसी को कहा था,"और दो लाख लगाते तो नई आती।" इसलिए उसकी बातों को तवज्जो नहीं देता।
गली की कुछ औरतें खिड़कीयों से झांक रही थी।उनकी उत्सुकता थी मगर औरों में औरतों की उत्सुकता जायज नहीं मानी जाती। औरतें किसीको अच्छा तक नहीं कह सकती।मन की बात मन में ही रह जाती।खैर।
कुछ हमराजों ने गुलदस्ते देकर स्वागत किया। किसी ने मुझे गरीबी के दिन याद दिलाएं।
कोई जानकार कार के टायर देख रहा था। उसके कलर के बारे में टिप्पणियां हो रही थी।
मुझे इतनी शुभकामनाएं मिल रही थी कि जैसे मैं यूपीएससी में सफल हुआ हूं।कारण जो भी रहा है,मुझे खुशी मिल रही थी।
कार के बहाने बेकार की बातें सुनने को मिली।
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