दुख तो अपना साथी

                                   दुख तो अपना साथी
                                                       - नारायण खराद
     मैं दुख विरोधी नहीं हूं,ना ही दुख की खोज में हूं,मैं तो दुख को स्वीकार करता हूं क्योंकि जीवन
की पूर्णता दुख के बिना नहीं।दुख में जीवन सक्रिय हो जाता है।सुख तो दुख की परछाई है।
बिना दुख के सुख का कोई वजूद नहीं।दुख में जो वेदना, तड़प, पीड़ा ,यातना हैं,वही जिंदगी
का रस है इसलिए सुख में भी लोग अपने संघर्ष को याद करते हैं।
नवजात शिशु पहला जो भाव व्यक्त करता है,वह दुख है।दुख सुख का विरोधी नहीं है अपितु उसका साथी है।एक पहले तो दूसरा पीछे,एक इस पर तो दूसरा दूसरे पल।सुख दुख की लुकाछिपी का नाम जिंदगी है। यहां मिलन
का सुख विरह की वेदना के बिना नहीं है।
   बेबसी में बहे आंसू, खुशी में भी बहते हैं। सबकुछ खोने का जहां आभास हो, वहां फिर
से सब पाया जाता है। पतझड़ में गिरनेवाले वृक्षों के पत्तों की तरह ,नये पत्तों को मौका देते हैं।
यहां हाथ छोड़ने का रंज है तो हाथ पकड़नेवालों की कमी नहीं। आंसुओं से इन्सान की पहचान
हैं। जिसे दुखी होना आया,उसीको जीना आया।
   दुख का स्वागत ही सुख का रास्ता है।असल में सुख की भूमि दुख निर्माण करता है। जैसे कीचड़ में कमल खिलता है, वैसे दुख में सुख पलता है।सुख दुख हमारी सोच है, दोनों को अलग नहीं कर सकते।मगर यह भी सच है,जीवन का असली मजा दुख है।हम सुख से भी ऊब जाते हैं तो दुख पैदा करते हैं।सुख नीरसता लाता है।सुख पर जीवन समाप्त हो जाता है।दुखी आशावादी होता है,आशा ही जीवन है।असल में हम औरों को अधिक सुखी
समझते हैं,जो एक झूठ है।
   दुख से अनुभव आते हैं।दुख औरौ से और औरों के लिए भी होता है।दुख में ही त्याग, समर्पण है।
दुख से करीबीयों की पहचान है।दुख संघर्ष सिखाता है।दुख भ्रम तोड़ता है, स्वावलंबी बनाता है।दुख हिंमत बढ़ाता है, आत्मचिंतन करवाता है। दुख समझ बढ़ाता है।दुख से ही औरों की जरुरत महसूस होती हैं।सुख चाहकर
भी नहीं मिलता मगर दुख न चाहकर भी आ जाता है, हमें जगाने।दुख ही जागरण हैं।सारा
ज्ञान दुखी लोगों का निर्माण है।दुखी लोग विचारवान होते हैं। देवताओं की कथाएं दुख
की कथाएं हैं। 
  सुख आभास है,दुख स्थायी।दुख से ही सुख पैदा होता है।सारा निर्माण वेदना से हैं। वेदना में
सुख निहित है।दुख से बचना,सुख से बचना है। दुख अभिन्न हैं।दुख साथी है।
           

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