इल्जाम

              इल्जाम
                             -  ना.रा.खराद
इन्सानी फीतरत में जो ऐब शुमार है, उनमें 'इल्जाम' चरम पर है। षड्यंत्रकारीयों ने सदैवएक हथियार के माफिक इसका बेजा इस्तेमाल किया है। इतिहास गवाह है कि बड़े बड़े युद्ध तक इल्जाम से शुरू हुए हैं।पहले बदनाम करों फिर मारो शत्रु की यह चाल रहीं हैं।
  इल्जाम लगाने के पीछे स्वार्थ होता है। विचलित करना, परेशान करना या सताना इसका मकसद होता है।जब सताने की कोई वजह न हो तो षड़यंत्र के तहत इसे अंजाम दिया जाता है।बेगूनाह को गूनाहगार साबित 
करना इसका असली मकसद होता है।
राजनीति तो इसी पर चलती है।राजनेता सदैव
एक दूसरे पर कीचड़ उछालतें रहते हैं। लोकप्रियता घटाने हेतु यह इल्जाम लगाए जाते हैं।इल्जाम लगाने में कुछ खर्च नहीं,'लगे तो तीर नहीं तो तुक्का।' 
इल्जाम या तोहमत लगाना ,इन्सानी फीतरत
का हिस्सा है।एक ऐसा मस्तिष्क जो अक्सर
यह कार्य करता है। बचपन में मैंने देखा कि एक समवयस्क सहपाठी आए दिन अन्य छात्रों
पर कोई ना कोई इल्जाम लगाता था। झूठे आरोप लगाना जैसे उसके लिए खेल था। शिक्षकों से कहलवाके वह अन्य लड़कों की पिटवाई करवाता और अजीब तरह का सुख पाता था।आगे चलकर जब वह राजनीति में
गया तो उसे काफी सफलता मिली।इल्जाम का कीचड़ उछालों तो कहीं ना कहीं चिपक जाता ही है।यह एक ऐसा धंधा है,जो खुब पनपा है। हमारे आसपास ऐसे लोगों की भरमार है,जो इसीसे अपना पेट चलाते हैं।
इल्जाम लगाने के लिए चाहिए क्या,गंदी जुबान और नीच वृत्ति।जब चाहे,जिसपर चाहे लगा दो इल्जाम।अपना उल्लु सीधा कर लो, दूसरों का घर जले तो जले।
इल्जाम अक्सर भले,सज्जन, लोकप्रिय,अच्छे,
सच्चे लोगों पर लगाए जाते हैं।कौए के काले होनेपर कोई शक नहीं करता।शक तो बगुले के
रंग पर किया जाता है। इन्सान को बूरे,निम्नकोटी के लोगों से कोई चूभन नहीं रहती।इन्सान खिंचता ही उसे है,जो ऊपर या आगे जा रहा हो।
स्वयं गुनाह करके , दूसरों को बदनाम करना इस इल्जाम की खासियत होती है। 'उल्टा चोर
कोतवाल को डांटे।' यह कहावत चरितार्थ हो
जाती है।
इल्जाम से परिवार तबाह हुए।अच्छे व्यक्ति को
बूरा साबित करने के लिए,इल्जाम से बढ़कर
कोई हथियार नहीं।झूठ फैलाकर उसे सच्चाई
का रंग दिया जाता है।छल के लिए किया जानेवाला यह कपट होता है।कपटी लोग इसे अंजाम देते हैं। चूंकि कपटी लोग बहुत शातिर होते हैं। अपने मनसुबों को छिपाकर ,वे उसे अंजाम तक पहुंचाते हैं।तोहमत से परिवार बिखर जाते हैं। संस्थान हो या समाज,इल्जाम
से टुटे हैं।
झूठे मामलों में फंसाकर जेल में हजारों बेगूनाह
सड़ रहे हैं।यह अमानवीय है, प्रताड़ना है।
एक ईमानदार इन्सान पर दाग लगाने के लिए,उसपर भ्रष्टाचार का इल्ज़ाम लगाया जाता है।हर सफल व्यक्ति को नीचा दिखाने के लिए षड़यंत्र चल रहा होता है।सफलता की राहों में इल्जाम नामक रोड़ा डालकर ,यह लूटेरे रास्ता रोक देते हैं।
इल्जाम का संवेदनशील लोगों पर बहुत गहरा
असर होता है, यहां तक कि अपनी जिंदगी तक समाप्त कर देते हैं।
बेबूनियाद बातें फैलाना , किसीको बदनाम करना यह पापकर्म है। इससे बचना चाहिए। नहीं बचोगे तो बचोगे नहीं,यही उसका फल है।
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