छोड़ो कल की बातें.....

              छोड़ो कल की बातें.....
                                    - ना रा खराद


आजकल कल की बातें बहुत होती हैं,कभी बीते
कल की ,कभी आनेवाले कल की।दो कल के बीच
आज का वजूद मिटता जा रहा है।वह छटपटा रहा है,दम तोड़ रहा है।कल की उलझनें आज सिर पर हैं, उसके बोझ से सब दबे हैं।
कल को भूतकाल कहते हैं,यह 'भूत' काल बनकर
आता है।कल मिटा है,मूर्दा बना है। गड़े मूर्दे उखाड़ने से क्या लाभ? इसे 'इतिहास' नाम देकर उसकी रक्षा की जा रही है। उसे विरासत के नाम पर अगली पीढ़ी पर थोपा जा रहा है। पीढीयों की दुश्मनी निभाई जाती है।ग्रंथ खंगाले जाते हैं।
उसपर मतभेद होते हैं।मरे लोगों के नाम से जिंदा
लोग युद्ध करते हैं, विवाद, दंगे करते हैं।
आज और अभी खिला फूल इसलिए प्रसन्न है कि उसका कोई भूतकाल नहीं,ना ही भविष्यकाल, क्योंकि भूतकाल मर चूका है और भविष्य अभी पैदा नहीं हुआ, फिर इन दोनों कालों में आज क्यों खराब करना है?
कल अगर जिंदा रखा जाता है तो आज मृत होता
है।हर क्षण अनुठा है, उसे जिओ।अपने पूरखों का
वास्ता देकर , खुद को नकारा साबित न करो।
कल जो था ,वह आज नहीं ।हम अपनी जिंदगी
भरसक जिएं,न कि औरों की जिंदगी में उलझे।
वे अपनी जिंदगी जिएं,तुम अपनी जिंदगी जिओ।
उनकी जन्मतिथियों से लेकर मृत्यु के रहस्यों पर
बहस होती है। अपनी जिंदगी में रस होना चाहिए, औरों में उसीको रस होता है,जिसकी खुद की जिंदगी नीरस हो।कब तो दूसरों की कहानियां,जीवनीयां पढ़ोगे? अपनी भी तो जिंदगी है, उसे अपने तरीके से जिओ। परंपरा, प्रथाएं इसका वहन किसलिए? तब जो था,सो था।आज
जो है, हो।यही जिंदगी है।कल किसीने गाली दी थी,आज उसे भूल जाओ। नींद में जो भूलें फिर याद न करें। वर्तमान में जीना, जीना है,भूतकाल का बोझ ढोना मरना है। 
                         
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