आदमी का चरित्र बड़ा पेचिदा है,परत-दर-परत वह खुलता जाता है,वह जो कर्म करता है, उसके पीछे जो
मकसद,भाव या प्रेरणा है, उसे वह अक्सर छिपाता है और इसे छिपाने के लाख बहाने उसके पास होते हैं।
इन्सान अपने मुख्य उद्देश्य को छिपाकर कोई नकाब ओढ़ लेता है, औरों को धोखा देने में वह कुशल होता है। आदमी जितना भोला,सरल उतना उसे प्रिय होता है। बुद्धिमान व्यक्ति के संपर्क में बहानेबाज टिक नहीं पाते।
राजनीति में सफल लोग बहानेबाजी में माहिर होते हैं, बहानेबाजी के पैंतरे से राजनीतिक रोटीयां सेंकते है।
बहानेबाजी बच्चे, औरतें, वृद्ध सबमें दिखाई देती हैं, जैसे कि इसके सिवा काम बनता नहीं है। उधार लेना हो, या उधार देना हो बहाने बनाने पड़ते हैं। किसी से मिलना हो या किसीको टालना हो, बहाने काम आते हैं।
कहीं घुसना हो या कहीं से निकलना हो बहाने बनाकर कामयाब हो जाते हैं।
बहानेबाजी जैसे ख़ून में होती हैं, बिना सिखाएं बच्चे इसपर अमल करते हैं। स्कूल में नहीं जाना चाहता,तो पेटदर्द या सिरदर्द का बहाना बनाता है।माशुक अपनी माशुका से मिलने तरह तरह के बहाने बनाता है।
पत्नियां तो सदैव बहाने बनाती हैं,पति को उल्लू बनाती रहती हैं। सीधे टकराव से बचकर बहानों की आड़ में अपने पैंतरे चलाती हैं।पति को भी बहानों से खुद को बचाना होता है। जैसे लोहा लोहे को काटता है, वैसे बहाने बहानों को!
बहानेबाजी जीवन की जरूरत है, उसके अभाव जीवन
ठहर जाएगा, मनुष्य और मनुष्यता की असलियत खुल जाएगी जो समुची मानवजाति का चरित्र खोल देगी।
बहानेबाजी एक तरह ठगी होती हैं, बड़े बड़े बहानेबाज राजनीति में सफल हुए हैं। बहानेबाजी एक टेढ़ा खेल है,इस खेल में जो जितना माहिर उतना ही सफल होता है।
बहानेबाजी रामबाण औषधि है,जो कारगर है, इसलिए हरकोई इसे अपनाता है, जिनके पास नहीं, वे इसके शिकार होते हैं।बहाना कहीं भी, किसी भी समय बना सकते हैं। जेल से कैदी तक बहानों से फरार होते हैं।
पुलिस के चंगुल से अपराधी छुट या छोड़े जाते हैं , वहां भी बहाने काम आते हैं।
इन्सान के सारे झूठ बहाने की आड़ में होते हैं।इन बहानों को पहचानने के लिए तीखी नजर की आवश्यकता होती है, जिसके पास वो है,वह उससे बच जाता है,जो नहीं होता हैं,वह उसकी चपेट में आता है।
- ना.रा.खराद,अंबड