प्रेम

                                 प्रेम 
                                      - ना.रा.खराद


प्रेम की परिभाषा नहीं की जा सकती। फिर भी इस भावना को
समझने की जरूरत है।प्रेम अनेक भावों को
समेटे हुए है।स्नेंह, ममता वगैरा। कोई दादी अपने खुरदरे हाथों से अपने ‌कोमल पोते
के मुंह पर हाथ फेरती है , कोई बाप अपने बच्चों को कंधे पर लेकर चलता है, कोई देशभक्त मिट्टी के लिए मिट जाता है या कोई
अपनी प्रेमिका के लिए जिता‌ मरता है, तो प्रेम के लक्षण दिखते ‌हैं।
कोई प्राणियों से , किसान अपनी फसल से,
जो अपना है, जिसे अपना मानते हैं या जिसे
अपना बनाना चाहते उससे प्रेम है।प्रेम दोस्तों
से, पड़ोसीयों से, अपने गांव से ,देश से भी होता‌ है। प्रेम के बिना जीवन संभव नहीं है।
प्रेम देना ,प्रेम पाना यही जिंदगी है।प्रेम की
सिमा नहीं होती।किसे किससे प्रेम है,किसे किससे ‌होना चाहिए? यह बेकार की सोच है।‌यह एक मानसिक जरूरत है।एक व्यक्ति
का प्रेम सारी दुनिया से हो सकता है। प्रेम
के संबंध में ग़लत धारणाएं बहुत है। जवानी 
में जो शारीरिक आकर्षण है,वह प्रेम नहीं है।
वह शरीर पाने के लिए प्रेम का नाम है।
शादीयां इसी उम्र में होणे की वजह यही आकर्षण है।शरीर देखकर पसंद किया जाता
हैं। विवाह दो शरीर के होते हैं,दो प्रेमियों के नहीं।बंधन,मालकियत की भावना इसीसे है।
सपना चौधरी का नाच देखकर जो हजारों विवाहित पुरुष सिटी बजाते हैं, यूं ही नहीं।
हजारों बरसों तक राजाओं के हरम में हजारों स्त्रियां रहती थी। किसी को शिकायत‌ नहीं
थी।आज भी पैसे वाले लोग क्या करते हैं , सबको पता है।जिस्म की नुमाइश, वेश्यावृत्ति, नाचकर पैसा कमाना यह सब उनकी अपनी इच्छा से होता है।
स्त्री पुरुष को एक दूसरे के प्रति स्वाभाविक आकर्षण होता है।जो स्त्री इसे अत्याचार या अनैतिक मानती है, उसने अपने पिता,पति,बेटा इनके नैतिकता की पड़ताल करनी चाहिए।
शोषण, अत्याचार तो हर स्थिति में बुरा है। मगर नैतिक के नाम पर ,स्त्री को पुरुष के
विरूद्ध खड़े करना, उसे संदेह की नजर से देखना,उसपर इल्जाम लगाना, उसे बदनाम करना ,यह सब अत्याचार हैं।
स्त्री पुरुष एक दूसरे के विरोधी नहीं हैं। एक दूसरे से,एक दूजे के लिए है।
कोई शिक्षक अपने ‌छात्रों से प्रेम करता है।कोई अपने पालें हुए कुत्ते से ।प्रेम के बगैर
जिना मुश्किल है। लता के गानों से प्रेम, कोई खेल प्रेमी होता है।
किसी को दीन दुखियों से प्रेम है। 
किसी को वृक्षों से, फूलों से।प्रेम बहुत ही पवित्र भावना है, उसे शरीर से जोड़ने से विकृत हुआ है। खुद को शरीर न मानते हुए,मन माने तो मानसिक रूप में जुड़ने को मैं प्रेम कहता हूं। कोई अपना प्रेम प्रकट नहीं 
करता। हमें केवल शरीर दिखता है,मन नहीं। खैर,प्रेम से रहों।
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