प्राइवेट लिमिटेड भगवान!

             प्राइवेट लिमिटेड भगवान!
                                 - ना.रा.खराद
  मैंने भगवान के बारे में कथाकारों, पंडितों, पुरोहितों तथा मौलवियों, पादरियों से सुना हैं कि ईश्वर सर्वव्यापी है, लेकिन ईश्वर कहने से अल्लाह,God वालों ने एतराज जताया। कहा कि,हम इस बात को नहीं मानते। हिंदूओं ने कहा, ईश्वर सर्वव्यापी है, ईसाईयों ने कहा,God सर्वव्यापी है और मुस्लिमों ने कहा,सब अल्लाह का है।
भगवान का विषय आध्यात्मिक हो सकता है, धार्मिक या राजनीतिक कैसे हो सकता है। भगवान कोई नेता नहीं है,जो किसी धर्म का नेतृत्व कर रहा है, लेकिन जिस तरह से ईश्वर का विभाजन हुआ है,या कराया गया है, उससे पता चलता है कि मनुष्य सभी देवताओं को अगर एक नहीं मानता तो सभी मनुष्यों को कैसे मान सकता है। सिनेमाघरों में, होटलों में सभी धर्म के अनुयाई जा सकते हैं,तब तो धर्म आड़े नहीं आता,तब उसकी पायदान किसी मजहब की नहीं होती, फिर मंदिर मस्जिद या अन्य धार्मिक स्थल क्यों लिमिटेड होते हैं,वे क्यों सबके नहीं,सब क्यों उसके नहीं।
  उपरोक्त दावेदारी को मैं समझ नहीं पाता, लेकिन आंखें मूंदकर उसका समर्थन नहीं कर सकता। मैं इन सभी धर्मों के धर्मगुरुओं से मिला, मगर वे मेरी आशंका का समाधान नहीं कर सके,जब मैंने उन्हें थोड़ा उकसाया
तो वे झगड़े पर उतारू हुए, बात आगे और बढ़ाता तो वे मुझे जान से मार देते।
 दुनिया में जितनी हिंसा धर्म के नाम पर हुई है, उतनी किसी अन्य कारण से नहीं। जबकि सभी मानते हैं कि ब्रम्हांड का स्वामी ईश्वर है,ईसा या अल्लाह है। अगर ये तिनों अलग है तो स्वामी कौन है? अगर तिनों एक है,तो विवाद क्यों है? कहीं तो कुछ तो गड़बड़ी है।
  एक धर्म में भी हजारों देवता हैं, पूजापाठ, कर्मकांड के अपने तरीके है। आस्था का नाम देकर तर्क से छुटकारा पाते हैं। लेकिन आस्था तर्कसंगत विचारों में होनी चाहिए।
   विचारों का जब विरोध होता है,तो जरूर दाल में कुछ काला होगा।सवाल उठाने पर जवाब देना होगा। मुझे किसी ने कहा,' तुम मंदिर में क्यों नहीं आते?' मैंने कहा," तुम क्यों जाते हो?" इसपर वे गुस्सा हुए। उन्होंने कहा," तुम नास्तिक हो, धर्मविरोधी हो।" मैंने कहा, इसपर बैठकर बहस करनी होगी।" वे न माने। 
धर्म के नाम पर संगठन बनाकर एक ताकत
का निर्माण किया जाता है,उसी ताकत से अधर्म किया जाता है। दंगों में जो घटित होता है,वह कदापि धार्मिक नहीं हो सकता। सर्वव्यापी ईश्वर, अल्लाह या 
God को तुम लिमिटेड कर रहे हो,प्राइवेट
कर रहे हो। इसमें ईश्वर दोषी नहीं, उसके
अंधे भक्त दोषी हैं। कण कण में भगवान कहनेवाले ,किसका विरोध करते हैं। अल्लाह, ईश्वर या God अगर अलग है,तो ब्रम्हांड का स्वामी कौन, अगर एक है,तो उनके नाम से हम अलग क्यों?जवाब हो तो जवाब दो,न हो तो गालियां या धमकी!
           
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