प्रशंसा की कला

                                  प्रशंसा की कला
                                                - ना.रा.खराद
मेरे एक परिचित सज्जन आज बहुत बड़े मक़ाम पर है, उनके इस कामयाबी के पीछे उनमें प्रशंसा की कला का विद्यमान होना माना जाता है।इस कला में उन्हें महारथ हासिल है, इसमें उनका कोई हाथ पकड़ नहीं सकता,पैर पकड़ता है। कोई प्रशंसनीय हो या ना हो, उसे प्रशंसा से खुश करने की कला से वह उन लोगों में लोकप्रिय हो गए है,जो इससे महरुम थे, इनसे प्रशंसा पाकर संतोष पाते थे।
   उनका मानना था कि इन्सान को सबसे ज्यादा खुशी उसकी प्रशंसा से होती है, फिर क्यों न हम इसे अपनाएं,और दिल खोलकर प्रशंसा करें, क्योंकि प्रशंसा पाकर जो लोग खुश हो जाते,वे इनका आदर और सम्मान करते हैं, कोई बुराई नहीं करते। प्रशंसा में खर्च भी कुछ नहीं, सिर्फ झूठ बोलना जरूरी है,और यह झूठ सबको भाता हैं, कोई संदेह नहीं करता।
उनका मानना है कि प्रशंसा से हम अपने मनसूबे में कामयाब हो सकते हैं, आदमी को उल्लू बनाना हो, अपना उल्लू सीधा करना हो,तो प्रशंसा करों। प्रशंसा में सटीक शब्दों का इस्तेमाल वे बखूबी करते हैं। प्रशंसा झूठी होकर भी सच्ची लगें, इसमें उसकी कामयाबी है।वे किसी भी त्योहार पर शुभकामनाएं देना नहीं भूलते, यहां तक कि अपरिचित भी उनसे मेल बढ़ाते हैं।
   बड़े लोगों से उन्हें खासा लगाव है, उनसे कुछ हथियाना हो,तो प्रशंसा से बढ़कर कोई चीज नहीं है, उनके जन्मदिन पर वे बड़े पोस्टर लगवाते हैं,और उनके पैर छुकर उनके आशीर्वाद मांगते हैं, बाकी उन्हें सब अपने आप मिल जाता था। उन्हें जानने वाले कुछ लोग उन्हें चाटूकार अथवा चापलूस कहें, मगर उसे वे अपनी होशियारी मानते हैं।
   प्रशंसा की कला की निपुणता से उन्हें नवाजा गया है।जिस किसी की इन्होंने प्रशंसा की वे सब उन्हें पुरस्कार का जुगाड कर लेते थे , और मौके बेमौके उन्हें बाइज्जत प्रदान करते थे, पत्रकारों की उन्होंने इतनी प्रशंसा की है, वे सब इनकी खबरें बहुत बढ़ा-चढ़ाकर छपवाते थे। बधाई देनेवालों का तांता बंध जाता, क्योंकि उन सबकी अकारण वक्त बे वक्त प्रशंसा की थी।
किसी व्यक्ति लूटने का,धोखा देने का, उसे बहकावे में लाने का, उसे मनवाने का प्रशंसा से बढ़कर कोई कारगर तरीका नहीं है। बड़े बड़े ओहदे इसी प्रशंसा से प्राप्त होते हैं।जिसे प्रशंसा धर्म निभाना नहीं आता,वह कभी भी कोई ओहदा हासिल नहीं कर सकता। आदमी की प्रगति केवल प्रशंसा की बदौलत है, आखिर हम जो देंगे वहीं तो लौटकर आता है।
  आदमी आंखों में धूल झोंकने में प्रशंसा उपयोगी है। इससे आदमी अंधा हो जाता है। कानों का सुकून है प्रशंसा। पति-पत्नी का वैवाहिक जीवन इसी प्रशंसा से सुखी हो सकता है। दोनों एक-दूसरे की प्रशंसा गर करें,तो कभी विवाद न हो। बड़े से बड़े बदमाश को, मूर्ख को भी लोग शुभकामनाएं देते हैं, हजारों साल जिओ की बधाई देते हैं, कम-से-कम पींड तो छूटे।
प्रशंसा का नुस्खा अपनाकर आप अपनी जिंदगी कामयाब हो सकते हैं, मैने उस परिचित की कामयाबी को देखा है,तो आज से ही काम पर लग जाइए,जो मिले उसकी प्रशंसा शुरू कर दीजिए।देखो, कुछ ही दिनों आप सफलता की बुलंदियों पर होंगे। मगर दुनियावाले आपको चाटुकार कहेंगे, अगर सच भी हो ,तो भी प्रशंसा करके उन्हें चूप कर सकते हैं, क्योंकि यह कला सभी कलाओं में सर्वश्रेष्ठ हैं।


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