एहसास

 ‌‌                       एहसास
                              ‌‌- नारायण
उसकी आंखों में धुंधलापन है, इसलिए अब वह चीजों को ठीक तरह से देख नहीं पाता, फिर भी वह अक्ल का 
बड़ा तेज था। उसने अपनी आयु में बेशुमार किताबें पढ़ी थीं,वह आंखों से नहीं अपने ज्ञानचक्षुओं से देखता था।वह अधेड़ उम्र का एक हरफनमौला शख्स था, भावूक था,हर चीज को भावनात्मक लगाव रखता था, यहां तक कि निर्जीव चीजों से भी भावनात्मक था।
अब वह अकेला था, चूंकि उसके दो बेटे थे,एक शादीशुदा बेटी थी, मगर अपने पिता से मिलना तो दूर याद तक न करते थे।अपनी औलाद के इस रुखेपन से वह बहुत मायुश रहता था, किसी की हमदर्दी पर उसके आंसू छलकते, मगर वह अपनी औलाद को बदनाम नहीं करता था। उसका नाम सुखराम था, मगर उसकी जिंदगी में रत्तीभर भी सुख नहीं था।बस , अपने लाड़ले पोते पोतियों की बातें सुनकर सुकून पाता था। 
 सुखराम,जो अब अपने पूराने मकान में एक खटिया पर पूरानी गद्दी पर पड़ा रहता था,उसका बदहाल देखकर गांव के लोग उसके बेटों को तानें मारते थे, क्योंकि गांववासी जानते थे कि अपने दोनों बेटों को कामयाब बनाने में सुखराम ने कितने पापड़ बेले हैं। उसके कपड़े प्रायः मैले-कुचैले रहते थे। आस-पड़ोस के परिचित उसकी मदद करते थे, मगर उससे तंग भी आते थे।
वह अपने सभी काम स्वयं करता था, कोई काम न कहें, इसलिए बच्चे उसके आसपास भी नहीं आते थे।वह एक बहुत उपेक्षित व्यक्ति था।एक जमाना था,जब सारा गांव
उसका लोहा मानता था, मगर अब वह जान गया था कि कोई किसी का नहीं है।
सुखराम की पत्नी लाइलाज बीमारी से चल बसीं थी, उसके इलाज में उसने सारी  दौलत लूटाई थी। पत्नी के निधन से जैसे वह अपाहिज हुआ था, उसके क्रिया-क्रम में खर्च को लेकर दोनों भाईयों में जो तनातनी हुई थी, उससे वह बहुत आहत हुआ था।उसे बचपन के वे दिन याद आने लगे,जब दोनों भाई जबरन मां से पैसे छिनकर चाकलेट लाते थे, उसपर रामप्यारी मुस्कुरा देती थी।
 दोनों बेटों की तस्वीर जो दीवार पर थी,उसी तस्वीर को देखकर वह जीता था,वह अपने बेटों की शोहरत और दौलत के बारे में गांव में अक्सर बखान करता था, मगर उसकी दुर्दशा देखकर लोग उन बच्चों से नफ़रत करते थे।
अकेलेपन की त्रासदी वह झेल रहा था, मगर अपनी औलाद को देखने को वह तरस रहा था।एक दिन सुखराम को बेटे का फोन आया कि शहर आ जाओ, कुछ काम है।जो भी हो सुखराम इससे खिल गया, जैसे उसके बेजान से शरीर में प्राण लौट आए।
जब वह बेटे के घर पहुंचा तो पता चला कि उसे किसी महत्वपूर्ण कागजात पर पिता के हस्ताक्षर चाहिए थे।पता चला कि किसी बैंक में रामप्यारी के गहने लाकर में थे और उसीको छुड़वाने सुखराम के हस्ताक्षर की जरुरत थी।
गांव लौटते समय सुखराम को एहसास हो गया कि बाप को औलाद से बेइंतहा प्यार होता है, मगर औलाद को सिर्फ दौलत से!


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