मृत्यु

                         मृत्यु
                               - ना.रा.खराद
  मृत्यु और जीवन दो चीजें नहीं हैं,एक सिक्के के दो पहलू हैं।हम जिसे जीवन कहते हैं, मृत्यु का रुप है,और जिसे मृत्यु कहते हैं,जीवन रुप है। मृत्यु से हम भयभीत है, जिसका हमें कोई अनुभव नहीं,असल में हमें जीवन का भी अनुभव नहीं है, इसलिए मृत्यु से भयभीत है।
हमने जीवन अपनी इच्छा से पाया नहीं है,तो मृत्यु भी अपनी इच्छा से नहीं आ सकती। जबकि जीवन पर अपना अधिकार नहीं,तो मृत्यु पर कैसे हो सकता है।
मृत्यु का सिलसिला कभी थमा नहीं है,जिस दिन जन्म का थमेगा,उसी दिन वह थमेगा।आयु , उम्र शब्द मात्र   एक भ्रम है। सभी जीवजंतुओं की जिंदगी मौत का पैगाम है। जिंदगी छोटी ,लंबी इसकी कोई अहमियत नहीं है।लंबी उम्र की कामनाएं एक बकवास है।
चूंकि मृत्यु का किसी को अनुभव नहीं है, फिर भी उसके बारे में बहुत बोला जाता है। मृत्यु पर मातम अज्ञान है,या
उसमें अपनी मृत्यु का भय है शोध का मसला है।
सभी ग्रंथों में मृत्यु के बारे में लिखा है, करोड़ों लोग पढ़कर भी अपनी मूढ़ता नहीं छोड़ पाते।यह भी सच्चाई है कि किसी की मृत्यु से चाहें तुम कितने दुखी हो जाओ,अपनी मृत्यु नहीं टाल सकते। आकस्मिक निधन जैसे औरों का हुआ,हमारा भी हो सकता है।
आखिर हमारी सहानुभूति मृत्यु में क्यों है,जीवन में क्यों नहीं? मृत्यु में हमें इतना रस क्यों है,रोमांच क्यों है?
जब हम गहरी नींद सो जाते हैं,तब हम चिंता नहीं करते कि जागेंगे या नहीं? यहीं भरोसा मृत्यु पर भी होना चाहिए,असल में यह एक जीवन सफर है। जैसे दिन और रात, वैसे जन्म और मृत्यु। किसी एक आने से सफर रुकता नहीं।जो मृत्यु का स्वागत करता है, वहीं यथार्थ में जी रहा है। मृत्यु से सिर्फ लोक बदलता है, पृथ्वी भी हमारे लिए एक लोक होता है,एक अनभिज्ञ स्थान!
जिस तरह से हम यहां भयभीत नहीं है,उसी तरह वहां भी नहीं होंगे।
  हमें मृत्यु का भय नहीं सताता, जिंदगी का मोह हमें सताता हैं,हम उन चीजों को और लोगों को अपना मान बैठे हैं, दरअसल वे अपने नहीं है, प्रकृति के हैं। सांसों का रुकना मृत्यु का कारण है,वजह नहीं। मृत्यु तो जन्म के साथ है,उसकी हमजोली है।वह एकाएक नहीं होती, बल्कि एकाएक समझी जाती है।
   मृत्यु चाहें जिस ढंग से आएं, नतीजा एक ही है। मृत्यु पर बवाल, आक्रोश, हाहाकार क्षणिक है। जबकि अरबों की मृत्यु हो चुकी है, कोई नयी बात तो नहीं है।जीवन की अहमियत खुद के लिए है, औरों को क्या लेना देना? किसी की अंत्येष्टि में जमा भीड़ क्या अमर हैं? एक दिन इसी तरह किसी के कंधों पर लाश श्मशान आएंगी।मृतक को जिस सम्मान से पहुंचाया जाता है, जीवित था तब उसका यह सम्मान कभी नहीं हुआ।लोग पहुंचाने का काम बखूबी करते हैं।
  जिसके जीवन से तुम्हें कोई मतलब नहीं था, उसकी मृत्यु से सहानुभूति कहां से आ गई? यह सहानुभूति खुद के जीवित होने की खुशी होती है।हम अपनी जान देकर किसी को बचाते नहीं,ना ही उसे बचाने की कोशिश करते हैं, फिर यह रोना धोना किस चीज के लिए है?
अपना सहारा टूटने से,हम दुखी हो जाते हैं। इसमें स्वार्थ है।
  मृत्यु कभी जन्म के साथ होती हैं,तो कभी सौ साल बाद।कभी घर में,कभी चौराहे पर, इससे क्या फर्क पड़ता है। मृत्यु से कोई भाग या बच नहीं सकता, क्योंकि मृत्यु पीछा नहीं, बल्कि प्रतिक्षा करती है। मृत्यु का अपना रंग रुप नहीं,वह किसी भी भेष में आती है, मृत्यु का कोई कारण नहीं होता , मृत्यु अकारण होती है।
मृत्यु के आने का न इंतजार करों,न उससे भयभीत हो।
मृत्यु को न अंत मानों न शुरुआत। उसे न दुखदाई मानों न अकस्मात। मृत्यु को जीवन समझो।
                    
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