दुनिया का मेला
- ना.रा.खराद
यह दुनिया एक मेला है,इस मेले में भरपूर मनोरंजन है और साथ में झमेले भी! इस मेले में भीड़ बहुत है,एक-दूसरे के लिए महत्वपूर्ण! जो जितना उपयोगी उसकी उतनी कीमत।मेले में अपनी-अपनी दुकानें हैं, ग्राहक है। यहां सड़ा हुआ बेचने वाले और उसे खरीदने वाले मिल जाएंगे। यहां हर मोड़, नुक्कड़ या कोने में कोई छिपा है,जो मौका पाते ही दबोच लेता है। यहां चूहा बिल से बाहर निकलने से पहले हजार बार बाहर झांकता है,और बिल्ली किसी कुत्ते की आहट से सहम जाती है। यहां बसे गांव वहशत में सांस लेते हैं, क्योंकि बाघ और शेर वहां राज करना चाहते हैं।
इस मेले में भिखारी दौलतमंद हो रहें हैं,और दाता भिखारी। यहां हर इन्सान किसी खिलौने से खेल रहा है, सर्कस में जानवर नहीं, बल्कि आदमी के कारनामे दिखाए जाते हैं,इस मेले में कंटीले पौधे पर भिखमंगे सोते हैं,और हरामी मुलायम गद्दों पर आराम फरमा रहे हैं।
इस मेले में शेर पिंजड़े में और आवारा कुत्ते सड़क पर आज़ाद घुम रहे हैं।
दुनिया के इस मेले में भीड़ इतनी है कि आदमी आदमी को पहचान नहीं पा रहा है। शोरगुल इतना है कि कोई किसी कुछ सुन नहीं पा रहा है,हर आदमी बस मेले में खो गया है।यह मेला चकाचौंध से सराबोर है,इसकी चमक दमक हर किसी लुभा रही है, यहां आग भी लगें तो लोग उसे मनोरंजन समझते हैं।
दुनिया के इस मेले में जिसकी जेब में फूटी कौड़ी तक नहीं,वह भी इसका मुफ्त में लुत्फ उठा सकता है।
दुनिया की इस मेले में तवायफों के अड्डों पर आशिकों की भीड़ लगी रहती हैं और पतिव्रताएं अपने व्रत पालन में मग्न। यहां सुंदरियों को खिताबों से नवाजा जाता है और कुरुपता को मिट्टी के हवाले किया जाता है। यहां मंदिरों में, मस्जिदों या गिरजाघरों में भक्तों की भीड़ है और साथ में लूट का बाजार गर्म है।ईश्वर कहें या अल्लाह भक्त चिल्लाकर उसे पुकार रहा है, मगर पलटकर कोई आवाज नहीं सुनी जाती।
अब प्रार्थनास्थल पर्यटन स्थल हो गए। मनचलों के आशिकगाह हो गए।
अब ईश्वर के दर्शन भी व्ही आय पी हो गए, सरकारी दफ्तरों के मुरीद हो गए।
दुनिया के इस मेले में कोई किसीका नहीं है, फिर भी सबको सबकी जरूरत है और यहीं जरुरत इन्सान को बांधे रखे हैं।
यहां लूटेरों को शानदार महल है और श्रमिक झुग्गी-बस्तियों डेरा डाले हुए हैं।इस मेले में लूट-खसोट के हजारों रास्ते हैं, इसमें कुशल को होशियार कहा जाता है। यहां मीनार पर बैठे कौए अपना कद दिखाते हैं और हाथी के पैरों तले कितने जीव दम तोड़ रहे हैं।बकरे इसलिए कांटे जा रहें हैं कि उनका स्वाद इन्सान को भाया हैं, मांसाहारी कहें या मांसभक्षी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
इस मेले मेले में तवायफें नृत्य से अपना पेट पाल रही है और दीवानें अपनी जेब खाली कर रहे हैं। यहां रिश्तों में इतनी खटास है कि आएं दिन झगड़ा हैं, और मजबूरियां उसे बांधे हुए है।
यहां वक्ता और श्रोता एकही मजबूरी में हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन बोल और कौन सुन रहा है।मेला जो सदियों से लगा है और लगा रहेगा।जिसे इससे मजा लेना आया,उसीने लिया। कोई तो अपना बटुआ भीड़ में खो गया, उसे ढूंढने में निकल गई,किसे के हाथ वो बटुआ लग गया और वो मज़े से रेवड़ियां खा रहा है और बांट रहा है, लोग उसके गले में पुष्पमाला डाल रहा है।
मेले में मसखरे है,जो हंसाते हंसाते जेब से पैसा ऐंठते है। दुनिया का यह मेला बड़ा रंग-बिरंगा है, यहां जो आया खो गया।