शक बेशक अच्छा नहीं होता है।

                     शक की सूई
                                   - ना.रा.खराद
इन्सान की अनेकों प्रवृत्तियों में,शक करना उसकी प्रवृत्ति है, आशंका, अविश्वास, संदेह उसके अन्य नाम हैं। इन्सान का मन सदैव किसी ना किसी शंका से घिरा रहता है,पूर्ण
विश्वास से वह कभी नहीं रह सकता।एक अनजाना डर उसके जेहन में होता है, इसलिए बहुत ही फूंककर वह कदम रखता है। सदैव शंकित मन बेचैन रहता है और अपनी बेचैनियों का आसपास प्रभाव डालता है।
मैंने सबमें जो सामान्य रुप से जो बात देखी
है,वह है शक,संदेह,या आशंकाएं। कोई कहीं भी किसी पर भी भरोसा नहीं कर रहा हैं, सबको ऐसा लग रहा है कि मुझे धोखा दिया जा रहा है, ऐसे परिवेश में भला कोई कैसे विश्वास करें? 
छोटी छोटी चीजों में भी आशंका,दो रुपए की कलम खरीदी उसमें भी आशंका। होटल में धोएं गिलास को फिर से धोना, पानी कैसा है पूछना ये सवाल आम है, जिसके उत्तर पहले से तय होते हैं। फिर इन
सवालों का कोई औचित्य रह जाता है?
परिवार में तो पति पत्नी हो या बच्चे सदैव
शक करते हैं। कहां था, क्या कर रहा था, कौन साथ था वगैरह जैसे प्रश्नों का अंबार!
पति या पत्नी फोन पर बात करें यह सामान्य बात है, मगर शक की सूई उसमें छेद करती है।मेरी गैरहाजिरी में जरुर यह किसी से बात करती या करता होगा ।
एकबार शक ने अपना डेरा जमा लिया कि समझो नौबत आई। शक्की शख्स हर कृत्यों को शक से देखने लगता है, हकीकत में जो नहीं है, वैसा वह समझने लगता है और शुरू होता विनाशकारी खेल।
लेनदेन में भी तमाम आशंकाएं जताई जाती है,तब कहीं सौदा होता है। शादीब्याह के मामलों में तो आशंकाएं तो अपने चरम पर होती है, दोनों पक्ष अपने तरीके से छानबीन में लग जाते हैं,कि कहीं कोई आशंकाएं बाकी न रह जाए, बावजूद इसके शादीयां असफल होती है, क्योंकि आशंकाएं केवल भ्रम पालती झूठी तसल्ली देती है।
पुलिस का काम तो शक की बुनियाद पर चलता है, हजारों पर शक करों,तब एक गिरफ्त में आता है, मगर बेगुनाह पर भी शक किया जाता है,धान के साथ घुन भी पिसा जाता है।
अच्छा कार्य करनेवाले पर भी शक किया जाता है, रिश्वत न लेनेवाले अधिकारी, कर्तव्य ईमानदारी से निभानेवाले शिक्षक इनपर भी आशंकाएं जताई जाती हैं।
सतर्कता और शक में सुक्ष्म भेद है, दोनों को एक दायरे में नहीं ला सकते। सावधानी कभी अनुचित नहीं होती , मगर अनावश्यक,नाहक , फिजूल में आशंकाएं उठाना हानिकर है।शक तबाही लाता है, सतर्कता नहीं।
हर चीज में आशंका नहीं होनी चाहिए, विश्वास का जो आनंद है,वह आशंका से को अच्छे को बूरा समझना शक का नतीजा है।सही को ग़लत समझना आशंका है।
वादें, कसमें शक से पैदा होते हैं। भरोसा दिलाने के लिए ईजाद हुए हैं।
इन्सान औरों के साथ साथ खुद पर भी
शक करता है, आत्मविश्वास के अभाव में शंकित रहता है, मैं यह कर पाऊंगा कि नहीं? कहीं मैं नाकाम तो नहीं हो जाऊंगा?
स्वयं पर विश्वास न होना,शक और आशंकाओं का खतरनाक परिणाम है।जब खुद पर विश्वास नहीं है,तो औरों पर कभीविश्वास नहीं हो सकता,और ऐसी मनोदशा में कोई भला कैसे शांति पा सकता है। विश्वास का जो आनंद है,वह शक से या अविश्वास से नष्ट हो जाता है, इसलिए आशंकाओं को दरकिनार कर विश्वास और
आत्मविश्वास से जिएं, फिर देखें, जिंदगी कितनी खूबसूरत है।
                     
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