पुरस्कार देनेवालों की जरूरत है,पानेवालों की बलि देकर!

                                      पुरस्कारों की खैरात !
                                                            - ना.रा.खराद
आजकल डर लगता है कि मुझे अचानक कोई पुरस्कार न मिल जाएं, क्योंकि दौर पुरस्कारों को चल रहा है, लेनेवालों से देनेवाले इसमें सक्रिय हैं, वे खुद बलि के लिए बकरे की तलाश में रहते हैं।अब हर वर्ग के पुरस्कार है,हर क्षेत्र के और हर दर्जें के है। औकात पर निर्भर है कि आप किस श्रेणी में आते हैं। निम्न श्रेणी के पुरस्कार तो पुरस्कारों से महरूम आम इन्सान को दिये जाते हैं,जो दो सौ रुपए का बैग इमानदारी से वापिस करते हैं,या उसे जो इमानदारी पर स्कूल में भाषण दे, जहां कोई बेईमानी नहीं चलती।
 पुरस्कार की चूंकि कोई परिभाषा नहीं है,जो जैसा चाहे इसका मनमाफिक अर्थ लगा या खोज सकता है। जिनके नाम से पुरस्कार दिए जाते हैं, उन्हें कभी पुरस्कार नहीं मिला था।आज की पीढ़ी बड़ी भाग्यशाली हैं कि उन्हें कुछ न करों तो भी कुछ न करने का, पुरस्कार दिया जाता है। पुरस्कारों की एक खासियत रहती है,वो पाने और देने के लिए कुछ नया और अनूठा करना पड़ता है। पुरस्कार से अगर किसी का भला होता है,तो प्रदान करनेवालों का, क्योंकि असली मकसद किसी को सम्मान प्रदान करना नहीं, खुद सम्मान पाना होता है।
 पुरस्कार पाने वालों में यह गलतफहमी अक्सर देखी गई है,सारे जहां वहीं  काबिल थे, बाकी सब निट्ठल्ले और निकृष्ट!
 पुरस्कार पाकर वे खुद को औरों से श्रेष्ठ समझने लगते है,और औपचारिकता निभाने वाले प्रशंसक उनकी इस सोच को हवा देते हैं, जिसके चलतें उनके पैर जमीन पर नहीं पड़ते। पुरस्कार प्रदान करनेवालों को पता होता है कि कैसे बेवकूफ बनाया और पानेवाला भी यहीं सोच रखता है। दोनों मिलकर अन्य को प्रभावित करना चाहते हैं।
  पुरस्कारों का जाल इतना फैला है कि कोई कभी तो उसकी चपेट में आता है।अब तो देनेवाले इतनी अधिक संख्या में हैं कि लेनेवालों की कमी महसूस हो रही है। सरकारी,निमसरकारी, निजी, सार्वजनिक वगैरह। पुरस्कारों से नाम होता है,या
नामवरो को पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं,इसकी तह में जाने की आवश्यकता है। पुरस्कार से योग्यता पर मुहर लग जाती है, किसी एक पर मुहर लगाकर अन्य को अयोग्य घोषित किया जाता है।
   सरकारी पुरस्कार की अपनी एक महिमा है, क्योंकि इसमें कुछ नक़द भी दिया जाता है, निजी पुरस्कारों में तो आने-जाने का भाड़ा तक नहीं दिया जाता, इसी को गौरव कहते हैं। कहीं से कुछ न मिला हुआ आदमी इन पुरस्कारों से कृतार्थ होता है। किसी से अच्छा काम करवा लेने का यह एक नामी तरीका है, अगर उसकी प्रशंसा न की जाएं, उसे कोई कागज़ का टुकड़ा न थमाया जाएं, भला वो क्यों काम करें?
साहित्य क्षेत्र में तो पुरस्कारों की खैरात है, साहित्य में जितनी विधाएं हैं, उतने या उससे अधिक पुरस्कार है।नामी साहित्यकारों के नाम से हर वर्ष बेनामी साहित्यकारों को पुरस्कार बांटे जाते हैं।भले उनका साहित्य प्रसिद्ध न हो, मगर साहित्यिक प्रसिद्ध हो जाता है। पुरस्कार तो अनेकों क्षेत्रों के है,आप किसी भी क्षेत्र में कुछ उठापटक करों, आपकी दहलीज पर पुरस्कार का न्योता जरुर आएगा।
 
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