- ना.रा.खराद
त्योहार का मौसम है,इसीसे मेहमानों की आवाजाही शुरू हो जाती है।प्रिय,अप्रिय मेहमानों का तांता लग जाता हैं,उनकी खिदमत करना , मेजबानों का परम कर्तव्य होता हैं,यह मेहमानों की संख्या और फीतरत
पर निर्भर होता है कि मेहमाननवाजी रास आयी या नहीं।
कुछ मेहमान बतलाकर आते हैं,वे खुली चुनौती देनेवाले शत्रु की तरह होते हैं। परिणाम जो भी हो मगर छुपकर वार नहीं करतें।इत्तला करनेवाले मेहमान निश्चिंत रहते हैं, चिंता तो मेजबान करें।अब उन्हें यह पूरा हक होता है कि वे चाहे जितने आए और सब मिलकर परेशान करे।
आनेवाले अपनी फूरसत से आते हैं। आपके फूरसत की वे परवाह नहीं करते। मेजबान जो ठहरा,सेवा ही उसका धर्म है। मेहमानों का अगर एक पूरा कुनबा हो, बच्चों से लेकर बूढ़ों तक पधारें हो तो मेजबान अग्निपरीक्षा से गुजरता है। सहनशीलता की परीक्षा , सबसे कठीन होती है।
मेहमानों के अपने घर की वस्तूओं के प्रति जिज्ञासा उनके ज्ञान ग्रहन की क्षमता को दर्शाती हैं।हर वस्तु को छुकर,खोलकर,चलाकर , उलट-पुलट कीए बगैर ज्ञान की सीमा तक वे नहीं पहुंच पाते। चूंकिवे बच्चें मेहमान हैं, उन्हें डांट फटकार लगा नहीं पाते,केवल आंखों के इशारे वे अनदेखे करते हैं।घर की सारी व्यवस्था को बिगाड़ देते हैं,तहस नहस कर देते हैं।
चांर पांच बच्चे कोई मामूली ताकत नहीं होती। बच्चे बड़े जिज्ञासु होते हैं, किसी ने तो उन्हें देवता का रुप माना है।
घर में आते ही इनकम टैक्सवालों की तरह हर चीज खंगाली जाती हैं। कहीं कोई कोर कसरनहीं,उनकी दृष्टि बताती है कि अब खैर नहीं।
जरा सी अनदेखी क्या हुई,समझो बरसों से जतन की हुई कोई चीज धराशयी हो गई।
ये बालसैनिक बहुत उपद्रवी होते हैं।घर में घुसते ही चारों तरफ नजर फेरते है, फिर मोर्चा संभालते हैं। किताबें, डिब्बे, अलमारी खोलकर देखते है।टेप,टी.वी., कंप्यूटर चलाकर देखते हैं।कुर्सी, मोटर साइकिल ,कार में बैठकर देखते हैं। कुछ खाकर, कुछ पीकर देखते हैं।
उनका उधम किसी डाकूओं की टोली से कम नहीं होता।सभी आईनों में वे सुरत देखते हैं। कोई कंघीअछुती न रहे,इसका ख्याल रखते हैं। घर के हर कोने को तलाशते हैं फिर भी तस्सली नहीं होती, फिर सीढ़ीयां चढ़कर छत पर पहुंचते हैं।
जिस अलमारी को मैंने कभी खोलकर। देखा नहीं, बच्चों से बच न सका।ताला था तो चाभी ढूंढने लगे,इसी दौरान उनकी दृष्टि अन्य वस्तुओं पर भी पड़ी।सोचा था कुछ चीजें बच्चों की पहुंच से दूर हैं मगर यह तो भ्रम निकला,
बच्चे चूंकि जिज्ञासु होते हैं इसलिए हर चीज को टटोलते हैं। कोई चीज पटककर देखते हैं। उसके मुख्य उपयोग को नजरंदाज करके अन्य सारे उपयोग करके देखते हैं।
जोरआजमाइश तो बच्चों का गुणविशेष हैं।हर चीज को खिंचकर ही दम लेते हैं।यह सारा उधम उनके मां बाप खुली आंखों से देखते हैं।
मेजबान अपना मौनव्रत निभाता है। मेहमान के बच्चे हैं, हमेशा तो नहीं आते।अब आ गये तो कुछ निशान छोड़कर जा रहें हैं।
तोड़ना, खिंचना, मरोड़ना आदि सब तरह की उपद्रवी क्रियाएं वे समाप्त करते हैं ,फिर उन्हें भूख लगती हैं,वे भरपेट खाना खाते हैं और लौटते समय जब अलविदा करते हैं ,तो जैसे युद्ध में हमें परास्त करके जानेवाले दुश्मन की तरह लगते हैं।
हम अस्त-व्यस्त हुए सामान को फिर से यथास्थान एवं यथास्थिति रखने की कोशिश करते हैं। बरसों से जतन की हुई कुछ चीजों का हाल देखकर आंखों में आंसू छाए मगर नजदीकी मेहमान जो थे और उनके बच्चे! बच्चे बहुत प्रिय होते हैं, कुछ कह न सका। भगवान से यही प्रार्थना है, ऐसे उपद्रवी बच्चों से बचाएं, ताकि मेहमान का वजूद बना रहे और घर की वस्तुएं भी!