- ना.रा.खराद
मनुष्य के समूचे व्यवहार का केन्द्र मन हैं।जो अंग
नहीं मगर सर्वांग को संचालित करता है।मन इच्छाएं
करता है।उसके इच्छाओंकी कोई सीमाएं नहीं।असीम इच्छाओं का भंडार है मन।जहां इच्छा है,वहां मन है।इच्छा का दूसरा नाम मन है।
कई लोग मन के चोर होते हैं।मन में दुर्भाव छिपाते
है,और सदभाव दिखाते है।ऐसे लोग मौकापरस्त
होते हैं।भेड़ की खाल में भेडिए होते है।उनके असली चेहरे को कोई आसानी से जान नहीं पाता।
मन के मैले ये लोग।शराफत का नकाब ओढ़ते है।
अवसर पाकर दगा देते हैं।मीठी बातें करते हैं।अपने
जाल में फंसाते है।बडे़ चमकीले होते है।अच्छे लिबास में होते है।इत्र वगैरा छिड़कते है।बाहर से साफ सुथरे मगर मन में मैल पालते है।
मन में भडास होती है।वह कभी तो निकाली जाती
हैं।जमा क्रोध अकस्मात प्रकट होता है।किसी बहाने
भडा़स निकाली जाती हैं।भडा़स मौके की तलाश
में रहती हैं।
कुछ लोगों की इच्छाएं मन में ही रहती है।वे जो
चाहते है,उसे वे सार्वजनिक नहीं करते।अंदर हीअंदर उसे दबाते या छिपाते है।कुछ समझदार इच्छा प्रकट नहीं करते।उससे लाभ के बजाय हानि हो सकती है।सबकी सभी इच्छाएं कभी पूरी नहीं होती।अपूर्ण इच्छाएं इन्सान को जीने की प्रेरणा देती है।कोई मन के लड्डू खाता है।हकीकत में मिले ना मिले,सपनों में खोता है।कल्पनाओं में खुशीयां पाता हैं।काल्पनिक आनंद में कोई रोक नहीं होती।मन आनंद निर्माण करता है।मन में ही रहता है।
मन किसी चीज से ऊबता है।उससे तिरस्कार करने
लगता है।कोई व्यक्ती, जगह,वस्तू अछुते नहीं।आज
जो प्रिय है कल उससे नफरत हो जाती है।पहले
पाने के लिए तरसे अब छोडने को उतावले हो जाते
है।जो भी चीज मिल जाती है,तत्क्षण बेकार हो जाती है।उससे मन खट्टा होता हैं।
सुंदर नजारा देखकर मन खिलता है।प्रसन्न होता है।
ऐसें कई मौके होते है जब मन खिलता है।मन की
अपनी जरुरते है।बस में बैठने को अच्छी सीट मिले
या अच्छा भोजन मिले,मन के मुताबिक जो भी हो,उसका खिलना सहज हैं।कभी कभी मन उदास भी होता हैं।किसी याद में खोता है।कहीं पर नहीं लगता।सबकुछ रुकसा जाता है।जिंदगी के सफर में कोई मन चुराता है।अपनी ओर खिंचता है।उसीकी खयालों में रहता है।ऐसो को चितचोर भी कहते है।अनजाने में यह सब होता हैं।भरी दुनिया में चारों तरफ वही नजर आता है।मन में जो हो वही बाहर दिखाई देता हैं।किसी कारण से मन छोटा भी होता है।
आसपास की घटनाओं से निराश होता है।बुरे अनुभव उसे निराश करते है।असफलतासे वह निरुत्साही होता है।उसका मन टूटता है।कोई सहारा न मिले तो वह संभल नहीं पाता।मन के अनुकूल कुछ घटित हो तो वह डोलता भी हैं।समय पर अच्छी वर्षा हो ,अच्छे नंबर मिले,नौकरी मिले तो मन डोलता है।
प्रिय व्यक्ती के अविश्वास से मन फट जाता है।बूरे
व्यवहार अथवा स्वार्थ से प्रेम समाप्त हो जाता है।
किसी चीज से मन भर भी जाता है।साधनों की अधिकता से मन भरता है।इच्छाएं समाप्त होती है।किसी के बूरे वचन से मन दुखी होता है।मन भारी होता है।खेद और अफसोस से भरता है।रुआंसा होता है।प्रायश्चित से भी बोझिल होता है।
मन किसी को अपना बना लेता है।अपना मानता है।यही अपनापन उसे जीने का बहाना देता है।
कोई अपना मन मित्रों के सामने खोल देता है।नीच
लोगों के सामने मन खोलना हानिकर होता है।अपना दर्द जो समझे उस हमदर्द के पास अपना मन खोलना चाहिए।किसी किसी के मन में क्या है
इसकी थाह कोई लगा नहीं पाता।जो लोग अपनी मन की बात बताते नहीं, उनका मन टटोलने की कोई कोशिश करता है।
हमें जिंदगी में औरों का मन रखना पड़ता है।उसकी
खुशी या तसल्री के लिए दो कदम पीछे हटना पडता है।रिश्तें खराब न हो इसलिए भी मन रखना पडता है या अपने स्वार्थ हेतू भी! जिंदगी में मन लगना जरुरी हैं।चाहे वह जिसमें लगे।किसी गांव में,शहर में, घर में मन लगे तो
ठीक है वर्ना मन मायुश होता है।संपर्क से कुछ लोग
मन से उतरते है।फिरसे मन में उनके लिए जगह
नहीं होती।
मन के इतने सारे रंग है।मनुष्य मन है।मन का ही
सारा खेल है।यह लेख मन लगाकर पढे और मन
में रखे।चाहे तो मन खोले।मन डोले तो कहे।आपका
मन टटोले।मन ही मन खुश रहें।