मैं स्वार्थी हूं

                 मैं स्वार्थी हूं

मैं निपट खुदगर्ज हूं, स्वार्थी हूं ।यह सच कहने में मुझे कोई हिचक नहीं है। स्वार्थी होना कोई गुनाह नहीं है, स्वार्थी न होना गुनाह है। हां,मगर स्वार्थी व्यक्ति को कोई बड़ा या महान नहीं मानता।लोग अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को महान बना देते हैं और मैं लोगों के झांसे में नहीं आना चाहता।
किसी के लिए कुछ करने की बातों में अंहकार है।खुद को बड़ा साबित करने की कोशिश में
अंहकार है।त्याग,दान वगैरह सब नाम कमाने
की कला है।अगर हर व्यक्ति स्वार्थ को अपनाएं
तो औरों की खातिर कुछ करने की जरूरत नहीं है।
सब दूसरों की भलाई की बात कर रहे हैं। मां-बाप ,भाई, रिश्तेदार, दोस्त , साधू-संत, शिक्षक चूंकि सब अपना स्वार्थ साध रहे हैं।
किसी भलाई हो तो बात सामान्य हो,खास न माने। पेड़ अपने स्वभाव से बढ़ता है,किसी की
खातिर नहीं।उसका कौन क्या और कैसा उपयोग करता है ,उसकी उसे परवाह नहीं।सूरज
अपने नियम से उगता है,कौन उसकी रोशनी में
क्या करता है,जागा कि सोया है ,सूरज उसकी
चिंता नहीं करता।वह अपने स्वभाव से जिता है,किसी के लिए कुछ करने का अंहकार उसमें
नहीं होता।
कुछ देने में अगर आपको आनंद मिलता है तो वह आपका स्वार्थ है और देने में तकलीफ है मगर अंहकार के लिए जरूरी है।गरीब भी भिखारी को दो टुकड़े देकर उससे बड़ा बनता है।असल में किसी कुछ देकर हम उससे बड़ा बनना
चाहते हैं।यह स्वाभाविक नहीं है बल्कि अपने
अंहकार के लिए अख्तियार किया गया मार्ग है।
तुम्हारे लिए किसी को कुछ करना पड़े, इससे पहले तुम अपने लिए कुछ करों, स्वार्थी बनों।
जहांपनाह, कृपालु वगैरह का जन्म इसी मानसिकता में हुआ है। प्रशंसा से पेट भरने की कला है।
अपने स्वभाव से जो कुछ किया जाता है, उससे
अंहकार पैदा नहीं होता। अपने स्वार्थ के लिए जो कुछ किया जाता है, उससे अंहकार निर्माण होता है। स्वार्थ से अंहकार भयंकर चीज है।
किसी को दाता कहकर उसका धन ऐंठना जालसाजी है। कोई किसके लिए कुछ करें इससे
बेहतर अपने लिए कुछ करों। औरों से उम्मीद 
से महान लोग पैदा होते हैं। तुम कुछ नहीं करते इसलिए और कोई करता है और बोझ बनता है।
गंदगी तुम फैलाओगे, सफाई कोई और करे तो तुम अपने स्वार्थ के लिए किसी को महान कहलवाकर अपना कार्य दूसरों से करवा रहे हो।
तुम्हारा कोई उपयोग हो रहा है, तुमसे किसी का
भला हो रहा है तो हो जाने दो। मैंने किया,कभी न कहो।नदी बहती रहती , कोई पानी पिएं या न पिएं, कोई नहाएं धोएं उसकी मर्जी।न कोई मांग न शिकायत। इतना सरल ,सहज जो होता है वह
सामान्य है,मगर खास।
मैं स्वार्थी इस मायने में हूं कि मैं किसी के लिए कुछ नहीं करता ।सब अपने लिए करता हूं। इसमें अगर किसी का हित हो रहा है तो मुझे उससे कोई वास्ता नहीं है। किसी भी हाल में
मैं इस अंहकार को पालना नहीं चाहता।जिस धरती पर हम कदम रखते है,वह कभी नहीं कहती कि मेरे कारण तुम चलते हो। कोई फल नहीं कहता,'मुझे खाओ।' बिना कहे सब चलता है।
जिंदगी स्वाभाविक होनी चाहिए। कुछ करने का
अहोभाव अंहकार है।हाथी पर कौआ बैठे तो , इसमें हाथी का कोई त्याग नहीं ।बस,एक संजोग
है।संजोग का अंहकार नहीं होता है।बगीचे में पहुंच गए, खुशबू सुंघी ,सहज है।सहज को असहज अंहकार बनाता है, वर्ना इस दुनिया में
कोई किसी के लिए कुछ करता नहीं, सिर्फ हर कोई संजोग से पास आता है।
जहां भी कोई कोशिश है, वहां अंहकार है। अंहकार के कारण संघर्ष की गाथाएं सुनाई जाती हैं। व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए भी कुछ करें तो भी उसकी प्रशंसा होती है। असल में अंहकार बढ़ने की यही वजह है।
स्वार्थी बनो...! स्वार्थी बनो...!
                 
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