जिंदगी संकटों का सिलसिला हैं, छोटे मोटे संकट अक्सर आते रहते हैं,संकटों को मात देना जीने की शर्त होती है,इन संकटों पर बारीकी से गौर करें तो कुछ मौलिक तथ्य सामनेआते हैं।
सबसे अहम तथ्य यह है कि हम बड़े संकट के सामने छोटे संकट को भूलाए जाते है।
मेरे बचपन का प्रसंग मुझे याद है, मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ किसी किसान के खेत में बेर लाने गया था,हम सबने थोड़े बेर खाए और फिर घर ले जाने के लिए और बटोरने लगे उसी दरमियान उस खेत का मालिक जो कि बहुत गुस्सैल किस्म का इन्सान था हमें दूर से दिखाई दिया ,
हममें से एक दोस्त पेड़ पर चढ़कर बेर तोड़ रहा था,हमने जब उसे किसान के आने की बात बताई तो वह घबराकर आनन-फानन में वह नीचे कूदा,उसके घूटनों में चोट आई,खून बहने लगा फिर भी वह बिना रुके हमारे साथ भाग रहा था। किसान गाली-गलौच करता हुआ,
हमारा पीछा कर रहा था।हम जान हथेली पर लेकर भाग रहे थे।एक जगह पत्थर पर ठोंकर खाकर मैं गिर गया फिर भी मैं रुका नहीं। लंगड़ाता हुआ दौड़ रहा था।उसी रास्ते हमें दौड़ते देखकर कुछ कुत्ते हमारे पीछे पड़े मगर हमने उसकी परवाह नहीं की और दौड़ते रहे। किसान वापस गया,
तब हम रुक गए हम सब जोर-जोर से हांप रहें थे मगर इस बात से राहत महसूस कर रहे थे कि किसान की आफत से बचे।
जिंदगीभर यही तो होता है।हम छोटे संकटों को तब स्वीकार करते हैं जब हमारे सामने बड़ा संकट खड़ा हो।
घर में किसी गलती पर मां जब तमाचा लगाती है और कहती है," ज्यादा शोर मचाएगा तो तेरे बाप को बता दूंगी।"
बालक चूपचाप आंसू पोंछ लेता है।
बड़े संकटों का डर ही इन्सान को छोटे संकट सहने की शक्ति देता है। हमें बड़ी बीमारी के सामने छोटी बिमारियां तूच्छ लगती हैं।अगर बड़ी बिमारियां न होती तो हम छोटी बिमारियों से परेशान हो जाते। फिर तो सर्दी खांसी-जुकाम कैंसर वगैरह
की श्रेणी में आ जाती। बड़े-बड़े आपरेशन न होते तो मामूली कांट-छांट को बड़े
श्रेणी में आते।
मुझे 'शोले' सिनेमा का एक दृश्य याद है जिसमें 'गब्बर' बसंती का पीछा करता है और 'बसंती'अपने धन्नो नामक घोड़ी को रफ्तार पकड़ने की बात करती है,
तांगे का पहिया टूट जाता है फिर
भी रुकती नहीं क्योंकि पीछे जो संकट था वह बड़ा था।
जिंदगी की सारी भागमभाग बड़े संकटों से बचने की है। बड़े संकट के सामने छोटे संकटों की कोई बिसात नहीं।कक्षा में बच्चे मानिटर की डांट इसलिए सहते हैं कि मानिटर क्लास टीचर को न बता दें।
छोटे संकटों का स्वीकार बड़े संकटों के
भय से होता है वर्ना हम छोटे संकटों से जूझते की शक्ति खो देते।
जब शेर पीछे पड़े तो कुत्ते का कांटना मामूली संकट लगता है।जब जान जाने से बचें तो हाथ-पैर को टूटना छोटी बात हो जाती है।जिनकी जिंदगी में बड़े संकट नहीं वे छोटे संकटों को भी बड़ा मान लेते हैं।नल में देर से पानी आना, बिजली का पांच मिनट के लिए गूल होना बड़े संकट
लगने लगते हैं। बरसात में घर में दो बूंदें टपके तो संकट लगता है मगर उसी घर में बाढ़ का पानी घूसे तो बूंदें तो मजाक लगती है।
किसी देश पर युद्ध जैसा बड़ा संकट आएं तो बाकी सभी संकट फीके पड़ जाते हैं।
जब घर में सांप निकलें तो चींटीयों का डर काफूर होता है, मकोड़े का कांटना छूटपूट लगता है।
संकट तो जिंदगी का हिस्सा है मगर किस बात को हम संकट मानते हैं, इसपर बहुत कुछ निर्भर हैं। जिंदा रहने की खातिर हम अपने किसी को कटवाने से राजी हो जाते हैं। बड़े संकट छोटे संकटों को निगल जाते हैं। बिना संकट के जिंदगी बेमजा हो जाती है। औरों की जिंदगी के संकट से हम सतर्क होकर अपने छोटे-छोटे संकटों को भूला देते हैं या उससे लड़ते हैं।
संकट ही जीने का सबक हैं, प्रेरणा है। संकटों को मात देना, उन्हें सूलझाना यही जिंदगी है।छोटे संकटों से बचना है तो बड़े संकटों पर ध्यान दो ।