- ना.रा.खराद
दुख ,जो सबके हिस्से में आता है ,दुख एक एहसास है,सुख की तरह।दुख भले ही एक-जैसा हों,मगर उसकी वजह एक-जैसी नहीं होती। दुखी होना इन्सान की फीतरत में है।दुख अपनी सोच का नतीजा है, हमें अगर दुखी होना है,तो वजह की तलाश में रहते हैं। कुछ लोग ऐसे कारणों से दुखी हो जातें हैं कि अन्य को उसमें कोई दुख नजर नहीं आता है।
हमारे अधिकांश दुख हमने ईजाद किए हैं, वर्ना उसमें कोई दुख नजर नहीं आता है।
हमारी अधुरी सोच,लालच,आशा, ईर्ष्या, अंहकार,गर्व इन चीजों से दुख पैदा हो जाता है,नकि किसी बाहरी कारणों से, जैसा कि हम मानते हैं।
अब किसी शानदार शादी में शिरकत की तो वहां खुशियां ही खुशियां होती है, मगर वहां भी कुछ लोगों को दुखी होते देखा है, जैसे उन्होंने निश्चय किया है कि जहां भी जाएंगे, दुखी हो जाएंगे। कोई यह सोचकर दुखी हो जाता है कि इतना फीजूल खर्च करने की जरूरत क्या है, जिसने खर्च किया, वह तो बड़ा खुश हैं, फिर इसे क्यों तकलीफ! मगर दुख के खोजी वजह ढूंढ लेते हैं। कोई तो इस बात से दुखी हो जाता है कि शादी के बाद बड़ा दुख भुगतना पड़ता है। बर्तन चाटकर खानेवाले लोग पत्तल पर जूठन देखकर दुखी हो जातें हैं। सोचते हैं,देश में करोड़ों लोग खाली पेट सोते हैं और यहां अन्न बर्बादी!
कोई तो इससे दुखी हो जाता है कि बैंड-बाजे वाले कितने समय से हवा फूंके जा रहें हैं, नाचनेवाले खुशी नाच रहे हैं, मगर बाजे वाले परेशान! ऐसे लोगों को सुखियों का सुख नजर नहीं आता, मगर दुखियों का दुख जरुर नजर आता है।
दुखी होना कमजोर दिल की पहचान है, अगर आप अक्सर दुखी रहते है,तो मानसिक रुप से आप विकलांग है। बाहरी इलाज से नहीं बल्कि अंदरुनी इलाज से ठीक करना चाहिए।
कपड़े पर एक दाग पड़ने से भी दिनभर या सप्ताहभर दुखी रहनेवाले लोग है,या अच्छे कपड़े को कोई देखे नहीं तब भी दुखी हो जातें हैं।
बहुत से लोग दूसरों से दुखी है, मानते हैं कि लोग मुझे दुखी बनाते हैं। किसी के कुछ कहने से, उपेक्षा से दुखी हो जातें हैं। हमारे दुख के लिए कोई और नहीं बल्कि हम खुद जिम्मेदार होते हैं, मगर ऐसा मानने को हम तैयार नहीं हैं।
इन्सान चाहें तो किसी भी बात से सुखी हो सकता है, मगर वह सुख की बजाय दुख की तलाश करता है, दुखी होने की वजह खोजता है।
मैंने एक सड़ा हुआ आम उठाया और चाकू से उसमें जो थोड़ा अच्छा हिस्सा था, काटकर खाने लगा, बड़ा आनंद आया। लेकिन मेरा मित्र जरा से सडे आम को बड़ी घृणा से फेंक रहा था, और दुखी हो रहा था । घृणा से दुख पैदा हुआ था,यह समझना जरूरी है।
किसी ने कहा कि, आपके कुछ बाल सफेद हो रहे हैं। मैंने कहा, बड़ा अच्छा लग रहा है क्योंकि इस वजह से कालें बालों की शोभा बढ़ी है । दुख केवल मान्यता है।
किसी ने कहा, आपकी आधी उम्र बीती है।
मैंने कहा,आधी बचीं है, इससे मैं खुश!
दुख केवल नजरिए का खेल है। मुझे जहां कोई दुखी दिखाई देता है, मैं उससे बात करता हूं और फिर वह मानता है कि अरे,दुख तो है नहीं,यह तो मन का खेल है।
कुछ लोग तो दुख का ऐसा कारण बताते हैं कि मुझे हंसी आतीं हैं।एक ने कहा, मैंने उसे धोखा देना चाहा, मगर दें नहीं सका, इसलिए दुखी हूं।अपनी ऐसी असफलताओं से भी लोग दुखी रहते हैं।
दुखी होना अपने आप में एक बीमारी है,इस बीमारी का इलाज यहीं है कि अपने दुख को टटोलें, उसपर मनन, चिंतन करें और इससे छुटकारा पाएं।