बेगाना

            बेगाना
                      - ना.रा.खराद

बेगाना यानी पराया,पर यानी गैर अर्थात दूसरा! जो अपना न हो, अपरिचित हो।
 अपना कौन है,अपना क्या है? जिस पृथ्वी पर हम जन्मे क्या वह अपनी है,क्या हम उससे परिचित थे? क्या मां बाप हमने चुनें हुए हैं? हम जो सांसें ले रहे हैं,क्या वे अपनी है? अगर अपना कुछ नहीं है तो पराया कैसे कुछ हो सकता है? क्या हम इस पूरे ब्रह्माण्ड के अंश नहीं है? जिस धरती पर हम कदम रखते है,वह हर ज़र्रा अपना नहीं है? बरसात की जिन बूंदों से हम जीवित है, क्या उस हर बूंद से हमारा रिश्ता नहीं है?
हर जगह हम जो सांसें ले पाते हैं, क्या उस हवा से हमारा रिश्ता नहीं है? 
  दरअसल यह हमारा अज्ञान है कि हम चीजों को तोड़कर देखते हैं। अक्षुण्ण ब्रम्हांड को अपनी संकिर्ण वृत्ति से तोड़ने का, बांटने का प्रयास करते हैं। संकुचित होना यानी इस ब्रम्हांड को न समझ पाना है। अपने आसपास जो विराट जगत फैला है, उसे अपना न समझना, अपनी संकिर्ण और सड़ियल बुद्धि का परिणाम है।
  एक स्री को साथ लेकर, बच्चे पैदा करके बाकी दुनिया पराई हो जाती है? अन्य को पराया कहकर या मानकर हम कितनी बड़ी भूल करते हैं,यह हम समझ नहीं पाते। मेरा,हमारा,अपना इन शब्दों ने जो उत्पात मचाया है। परिवार,जाती, धर्म,देश न जाने कितने टुकड़ों में हमने खुद को बांटा है। दूसरों को दूसरा कहने से जो नफरत और तिरस्कार पनपता है, उसपर कभी गौर नहीं किया जाता, मगर जब इसका अनुभव खुद को आता है,तब पता चलता है कि पराया या गैर शब्द कैसे शूल की तरह चुभता है।
   आज विश्वभर में जितने विवाद या उत्पात है,वे अपने पराये के फलस्वरूप है। कौन अपना है, कौन पराया,यह केवल एक भ्रांति है।यह सब मान्यताएं हैं। हमने अपने स्वार्थ के लिए ये शब्द गढ़े हैं ताकि हम इस वहम में जी सकें।
  जबकि जब मौत आती है तो कोई तुम्हें वापस नहीं ला सकता,ना ही कोई तुम्हारे साथ मरता है फिर क्यों यह भ्रम पाले कि मेरा कोई है, मेरा कुछ है।
   समूची धरती अपनी है, विशाल गगन अपना है,हम इस ब्रम्हांड के कण है, इसलिए संकुचित वृत्ति छोड़े, बड़ी सोच रखें। सबको अपना मानकर चलों तो मन की बुराईयां नष्ट हो जाती है।मन की उदारता तुम्हें सुखी बना देगी।

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