बीमार होने का सुख
- ना.रा.खराद
देते हैं, लेकिन बीमार लोगों के ठाठ देखकर कभी तो मैं भी बीमार हो जाऊं,यह उम्मीद लगाए बैठा था। रोजाना खुद को टटोलता,मगर चंगा पाकर
निराश हो जाता।
एक दिन नींद से जागा तो , स्वास्थ्य में कुछ गड़बड़ी लगी, क्योंकि मैं बिस्तर से उठ नहीं पा रहा था,बदन में कंपकंपी छूट गई थी और दर्द भी।सोचा,जिस दिन का इंतजार था वो दिन आ
गया। जैसे ही मैंने कराहते हुए श्रीमती को गुहार
लगाई,वे भांप गई, दौड़ती हुई आई।ऐसा शादी के इतिहास में पहली बार हुआ था, वर्ना कभी बुलाओ तो कहती," जरा धीरज नहीं है, स्कूल
कहीं भागा जा रहा है!"
पीने का पानी मांगू तो जवाब होता," इतने हट्टे-कट्टे हो गए, खुद के लिए गिलास भर पानी नहीं ले सकते।" मगर बीबी की तानेशाही आज फीकी पड़ी थी, बड़ी हमदर्दी से बोली," क्या हुआ जी,सोते समय तो अच्छे चंगे थे, खर्राटे ले रहे थे।"तमाम पत्नियां सहानुभूति में भी चोट करना नहीं भूलती।
आज मेरे लिए मुंह धोने के लिए गर्म पानी लाया
गया,कई बरसों की मांग आज पूरी हो रही थी और शायद,बीमारी की यह भी वजह रही होगी कि ठंडे पानी से नहाता और मुंह धोता था।खैर!
आज मेरे सभी अरमान पूरे हो रहे थे। मैं जरा सा
कराहता तो तुरंत पत्नी या बच्चे दौड़े आते और
पुछताछ करते।आज मेरे लिए चाय के बिस्कुट भी थे। स्वस्थ होने पर जो फल मेरे नशीब नहीं
हुए थे,आज वे फल पाकर मैं मैं खुद को धन्यभागी समझने लगा।कभी घर फल ले आता ,तो बच्चे उठा लेते , मैं केवल देखता रहता, लेकिन आज बच्चे मुझे फलों का ज्यूस
पिला रहे थे।
रोजाना के काम से आज छुटकारा मिल गया था। उधार मांगनेवाले भी नमस्ते करके वापस
लौट रहे थे। परिवार के सभी सदस्य मेरे आसपास ही थे।मेरी हर फरमाइश पूरी की जा
रही थी।
बीमारी दुख तो उससे मिलनेवाले सुख से कम था। भगवान करे , कभी-कभी मुझे बीमार बना दें,ताकि मैं भी सुख की अनुभूति पा लूं!