" इससे तो अच्छा होता,लाऔलाद रहते,कितनी बेपरवाही से बात करता है, आजकल के लड़कों
को हो क्या गया है!" रामशरण तमतमाए हुए बुदबुदा रहे थे।उनकी झूकी नजर और बौखलाहट
साफ बता रही थी कि रणवीर ने कुछ उल्टा-सीधा
किया है।रमा जानती थी, रणवीर अक्सर झमेले
खड़े करता रहता है और बाबूजी को निपटारा करना पड़ता है ,यह सब असहनीय है मगर औलाद
की खातिर वे सब सह लेते है।
गर्मी का मौसम था।सब्जी बाजार से बाबूजी अभी
अभी घर पधारे थे।अभी क्षण भी नहीं बिता कि मोबाईल की घंटी बजी,उधर से कोई कह रहा था,
"रामशरण जी आपके बेटे ने हमसे उधार लिया है,
रकम नहीं लौटा रहा है इसलिए आपको चेतावनी
दे रहे है।" इससे पहले कि वे कुछ पूछते फोन रख
दिया।आए दिन रणवीर की करतूतों ने उनका जीना
हराम कर दिया था। इकलौती औलाद थी इसलिए
बडे़ नाजों से पाला था।रामशरण कोई धनी व्यक्ति
न थे फिर भी अपनी हैसियत से कुछ ज्यादा ही
रुपया पैसा खर्च करते थे। उनके इसी लाड़ प्यार ने
उसे बिगाड़ दिया था। पढाई के बहाने वह बरसों
से उनसे दूर था।शहर की चकाचौंध जिंदगी ने उसे
अपने घर संस्कारों को भूला दिया था।
बाबूजी ने फौरन उसे फोन लगाया," रणवीर, मैं यह
क्या सून रहा हूं,अब तू उधार भी लेने लगा है, मैं तुझे हर माह जरुरत से ज्यादा पैसे भेजता हूं फिर
भी ....!" कहते कहते वे रूक गए।रमा ने उन्हें इशारे
से रोका।रमा जानती थी कि वे गुस्से में न जाने क्या
कह दे और रणवीर क्या कर बैठे और ऊपर बाबूजी
को उच्च रक्तचाप भी है।
रमा गिलास में पानी लेकर आई।दो घूंट पानी पीकर
बाबूजी शांत हुए।बोले," रणवीर बचपन कितना प्यारा था, उसे देखकर थकान मिट जाती थी।"
"बडे़ होकर न जाने औलाद को क्या हो जाता है,जब तक जरुरत , तब तक आदर और फिर अपमान?" रमा ने कहा," अभी अनुभव नहीं, जिंदगी की ठोकरें खाएगा तो अपने आप सयाना
हो जाएगा।" " बाप की कमाई पर रोटियां तोड़ना
आसान है,जब खुद कमाएगा तो पता चलेगा , कितनी रोटियां बेलनी पड़ती है!"
रमा की हमदर्दी से बाबूजी शांत हुए कहा,"सब नशीब का खेल है, पड़ोसी का बच्चा देखो,अभी
बारह साल का घर की सारी जिम्मेदारी बखुबी समझता है, औलाद हो तो ऐसी हो।"
रमा ने खाना परोसा ,रामशरण को भूख लगी थी।
गपशप चली तो रामशरण औलाद की पीड़ा को
भूल गए।
रामशरण के रिटायर होने में अब छह माह शेष थे।
तैंतीस साल की नौकरी में जो जमा पूंजी है उन्हें
मिलनेवाली थी।अभी घर की मरम्मत करनी थी।
रणवीर की शादी जो करानी थी।उधर रणवीर की
पढाई का अंतिम साल था। कोई नीजि कारोबार
चलाने की बात उसने कही थी। बाबूजी के पैसों
उसे इंतजार था।
आखिर वो दिन आ ही गया, बाबूजी रिटायर हुए।
चालिस लाख रुपए उनके खाते में जमा हुए तो
रणवीर जैसे उन्माद में आया।अगले दिन से ही
पैसों की मांग करने लगा।रमा तैश में बोली," तुझे
पैसों की पड़ी है,उनकी तबीयत तो देख।"
रणवीर मां पर कड़ककर बोला,"तू चूप रह,तेरी वजह से बाबूजी ...!" मां ने उसे रोका ,वह जानती
थी , रणवीर बदजुबान है,न जाने क्या कह दे।
रणवीर झपटकर वहां से निकल गया । बाबूजी आंखें बंद करके , चुपचाप बैठे।रमा ने आंखों से
टपकते आंसुओं को अपनी हथेली पर लिया और
कहा," देखों मेरी हथेली पर मोती है।"
रामशरण ने पत्नी के कंधे पर सिर रख दिया और
खुलकर रो पड़े।
ना रा खराद अंबड