अंत्ययात्रा

                   अंत्ययात्रा
                                 - ना.रा.खराद

 जीवन के सफर की अंतिम यात्रा यानी अंत्येष्टि अर्थात अंत्य यात्रा। मैंने अपनी जिंदगी में हजारों अंत्ययात्रा में शिरकत की है,जमा भीड़ को देखा है, उनके सुरतों को निहारा हैं, उनके अल्फाजों को सुना है,इस यात्रा में  यात्रियों को जो न्योता दिया जाता है, उसे न्योता नहीं बल्कि संदेश या खबर कहा जाता है,इस यात्रा में एक को
खबर भेजों तो वह खुशखबरी की तरह हजारों में फैलाता है।
  इस यात्रा में शामिल लोग बिना बुलाए होते हैं, यही इस अंतिम यात्रा की खुबी है और निरालापन भी!
इस यात्रा पर शख्स लौट के आता नहीं, अगर आ भी गया,तो उसे कोई पहचानता नहीं और वह किसीको!
इस यात्रा में जितने अधिक लोग शामिल होते हैं,उतनी मृतक की प्रतिष्ठा मानी जाती है, चूंकि धर्मग्रंथों में आत्मा के अमर होने की बात कही है, इसलिए कुछ धार्मिक लोग मृत्यु पर दुख नहीं जताते, बल्कि दुख से छुटकारा मानते हैं।
   अंतिम यात्रा में भीड़ भले ही हजारों की तादाद में हो, मगर चुप्पी साधे रहती हैं, इस चुप्पी के भी कई मायने होते हैं। कोई हंसोड़ इसे महज एक मजाक समझता है,और इस सन्नाटे में भी कुछ चुटकुले सुनाए बगैर नहीं रहता , मगर सामूहिक शिष्टाचार के चलते अपने को रोकता है।
अंत्ययात्रा में अंतिम दर्शन एक अहम हिस्सा है, जिन्होंने मरहूम को पहली बार देखा है, उनके लिए भी वह अंतिम दर्शन हैं, और जिन्होंने पहले कभी दर्शन नहीं लिए उनके लिए भी अंतिम है।
 अंत्ययात्रा जिस मार्ग से गुजरती है,उस मार्ग पर कोई रुकावट नहीं होती,सभी जैसे मौन होकर मरहूम को और भीड़ को बड़ी कौतूहल से देखते हैं, कुछ समय के लिए चिंतित होते हैं, क्योंकि हर मौत एक पैगाम देकर जाती है।
 कुछ लोग ' अमर रहें ' के नारे लगाते हैं, चूंकि सबको इस बात का पता होता है कि कोई अमर नहीं रहता, फिर सिर्फ कहने की तो बात है।
  इस अंतिम यात्रा में मरहूम की जीवन यात्रा के अनेक पहलुओं पर रोशनी डाली जाती हैं, हरकोई कोई किस्सा गढ़ लेता है, और बगल में चल रहे शख्स को सुनाकर अपनी सहानुभूति जताता है।इस यात्रा में ऐसे भी लोग शामिल होते हैं, जिन्हें इसके मृत्यु से कोई ग़म नहीं होता , मगर अपनी राजनीतिक स्वार्थ के चलते, मृतक के घर जीवित बचे लोगों के वोट हासिल करना उसका मकसद होता है।
 इस यात्रा में आनेवाले आने से ज्यादा लौटने में उत्सुक होते हैं, चिता में आग क्या लगी, उड़नछू हो जातें हैं, वे जो महत्वपूर्ण काम छोड़कर इस गौण काम के लिए आएं थे।
 अंतिम यात्रा में पुरुषों के साथ साथ स्त्रियां भी हुआ करतीं हैं, अपने तरीके से दुखी सुरत बनाकर, मरहूम के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करतीं हैं,और मरे हुए आदमी के बारे में गलत नहीं बोलना चाहिए,इस धर्म का पालन करती है।
 अंतिम यात्रा में शोकसभा नामक एक नया रिवाज चलन आया है, झूठी बातें बड़ी शिद्दत से कहनेवाला वक्ता इस सभा का संचालन करता है, वक्ता ऐसे मौके पर मृतक की आड़ में जीवितों पर पर प्रहार करते हैं,और उल्लु सीधा करते हैं। कुछ समय शोकसभा लोकसभा लगने लगतीं हैं।
   अंत्ययात्रा में मरहूम पर फुलों की बरसात होती है,जब जीवित था तो एक फुल उसे सुंघने नहीं मिला था। कुछ फुटकर सिक्के इधर-उधर फेंकें जातें हैं,धन की महिमा अपार है।
 अंतिम यात्रा में कुछ वृद्ध भी शामिल होते हैं,इस यात्रा की क्यूं में लगे लोग, अपनी अंतिम यात्रा का रिहर्सल देख लेते हैं। जीतें जी जो नशीब नहीं हुआ, मरने पर होता है, अंतिम इच्छा पूरी की जातीं हैं।
अंतिम यात्रा की अंतिम पंक्ति!

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